बाइबिल के नज़रिये से इस्लाम (Islam in Light of the Bible - Hindi)

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August 24, 2015

अब गलातियों के अध्याय से बेशक हमें यह अंश मिलता है जो हमें चेतावनी देता है

अन्य सुसमाचार प्रचारक से। बाइबिल की पद संख्या में व्याख्या करता है:

"मुझे आश्चर्य होता है,कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार

की ओर झुकने लगे।"

अब ध्यान दीजिये कि ये सुसमाचार यीशु मसीह की दया को इन्कार करता है । आप देखिये, यथार्थ सुसमाचार में

मुक्ति यीशु मसीह के अनुग्रह से ही होती है । यहाँ मोक्ष है दया के माध्यम से, श्रद्धा से ना कि

उन कृत्यों से जिनकी डींगें हाँकें । बाइबिल कहती है पद संख्या में :

परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं, (ऐसा माना जाता है कि यह पूरी तरह अलग नहीं है) लेकिन बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो

तुम्हें परेशान करें और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।

अब इसमें यीशु मसीह के सुसमाचार के तत्व तो मौजूद हैं लेकिन इन्हें तोड़ा गया है, बिगाड़ा गया है ।

पद संख्या में कहा गया है परंतु यदि हम या स्वर्ग का कोई भी दूत उस सुसमाचार को छोड़ जो हमनें तुम्हें सुनाया है,

कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो जाने दो। जैसा कि पहले कहा था

मैं फिर से कहता हूँ, अगर कोई भी व्यक्ति यीशु मसीह के सुसमाचार के अलावा अन्य सुसमाचार का उपदेश देता है,तो उसे

श्रापित हो जाने दो।

अब यहाँ उन लोगों के खिलाफ बहुत ही कड़ी चेतावनी दी गई है, जो अन्य सुसमाचार का उपदेश देते हैं । यीशु मसीह खुद

ज़ोर देते हुए दोहराते हैं एवं स्पष्ट कहते हैं। वे कहते हैं देखो, अगर हम स्वयं भी

कोई अन्य सुसमाचार लेकर आते हैं। यहाँ तक कि मैं स्वयं भी आकर ये कहता हूँ कि "मैंनें अपना मन बदल दिया है, यह एक अन्य

सुसमाचार है।" तब भी मेरी बात नहीं सुनना। कोई भी और अन्य सुसमाचार नहीं है। केवल एक ही सुसमाचार है

एक ही तरीका है बचने का, और वह है यीशु मसीह की दया से। वे कहते हैं, "एक दूत

स्वर्ग से आकर" एक अन्य सुसमाचार देता है, जो कोई अन्य सुसमाचार का उपदेश देता है। कोई भी दूत

जो आकर अन्य सुसमाचार देता है, "उसे श्रापित हो जाने दो।"

आपने अद्भुत शैतानी शक्तियों के बारे में सुना होगा। ये सभी गलत प्रचारक इन दुष्ट शैतानी शक्तियों से

प्रेरित होते हैं। हम उन्हें पिशाच कहते हैं। मोहम्मद और जोसेफ स्मिथ दोनों ही

ऐसे शैतानों की श्रेणी मेंआते हैं। और मेरा यह मानना है कि गलातियों की भविष्यवाणी, इन्हीं दोनों के द्वारा

की गयी है। वे दावा करते हैं कि उनकी यह भविष्यवाणी उन्हें एक दूत से मिली थी, जो कि अन्य एक सुसमाचार थी।

आज के मेरे इस धर्मविषयक व्याख्यान का शीर्षक है "बाइबिल के नज़रिये से इस्लाम"। मैंनें "बाइबिल के नज़रिये से हिंदू धर्म"

और "बाइबिल के नज़रिये से बौद्ध धर्म" इनके ऊपर व्याख्यान दिये हैं। पूर्वी धर्मों की आलोचना करते समय

मैं बाइबिल के नज़रिये से इस्लाम को भी दायरे में लाना चाहता हूँ। अब मैं आप सभी को यह दिखाऊँगा कि

कैसे इस्लाम धर्म अन्य सुसमाचार का प्रचार कर रहा है। ये जो किताब आप देख रहे हैं, यह है इस्लाम धर्म का पवित्र

ग्रंथ कुरान। हम कुछ देर में इसके बारे में और विस्तार से बात करेंगे। इस किताब में यह बात जानने के लिये ज्यादा दूर

जाने की ज़रुरत भी नहीं है कि इसमें अन्य एक सुसमाचार की बात कही गई है। इस संस्करण के पृष्ठ पर ही यह मौज़ूद है।

अब मैं आप सभी को बताऊँगा "सुसमाचार" का क्या सटीक मतलब है। बाइबिल के ल्यूक अध्याय में कहा गया है।

कि " प्रभू की आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उसने गरीबों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक

किया है। यह वाक्य यशायाह के अध्याय में है जहाँ यह कहा गया है कि प्रभू यहोवा की आत्मा मुझ पर

है, क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिये भेजा कि लोगों के दुखी मन को शांति प्रदान करुँ। पूरे के पूरे

बाइबिल में ही आप देख सकेंगे कि इन्ही शब्दों का अदल-बदल हो रहा है।स्थानीय भाषा हम इसे ही सुसमाचार कहते हैं।

सुसमाचार कहते हैं।यीशू मसीह के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति करना “सुसमाचार” है! प्रभु यीशू ने इसे सबको दिया है, मोक्ष

एक अमुल्य उपहार है जिसे केवल मात्र आस्था से प्राप्त किया जा सकता है।ना कि नीति परायणता उन कृत्यों से जो हम

कर चुके हैं। कुरिंथियों- में बाइबिल ने सुसमाचार के बारे में बात कही है, पद- में कहा गया है कि :

“ हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूँ जो पहले सुना चुका हूँ, जिसे तुमने

,जिसे तुमने अंगीकार भी किया था और जिसमें तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है। (तो सुसमचार से तुम्हरा

उद्धार भी होगा) यदि उस सुसमाचार को जो मैंनें तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो।

करना व्यर्थ हुआ।इसी कारण मैंनें सबसे पहले तुम्हें वही बात पहुँचा दी जो मुझ तक पहुँची थी कि पवित्र शास्त्र के वचन के

अनुसार यीशु मसीह हमारे लिये मर गये और उन्हें दफ्न किया गया और पवित्र शास्त्रों के

अनुसार तीसरे दिन जी भी उठे ।”ज़िंदा दफ्न होने के बाद यीशु मसीह के अनुग्रह के सुसमाचार के अनुसार यह घटना

यीशु मसीह की दया से मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,

इस तरह से हम मुक्ति पाते हैं। किसी कृत्य के फल से, या कोई भी नीति से हम स्वर्ग की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं।

गलातियों की सम्पूर्ण किताब में यही लिखा हुआ है। इस बात पर आस्था करना कि

यीशु मसीह मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित होकर वापिस आये हैं, यही हमारे लिये मोक्ष प्राप्ति का साधन है।

अब देखिये इस किताब के शुरुआत में ही, हमें बहुत ज्यादा अंदर जाने की भी ज़रुरत नहीं है, पृष्ठ- अध्याय-

(यह किताब विभिन्न अध्याय में विभाजित है,जिन्हें ‘सुरा’ कहा गया है) इसके पद संख्या- में कहा गया है,

“ और उनको खुशहाल खबर का प्रचार करे” क्या यह सुसमाचार जैसा सुनाई पड़ रहा है? यह हुआ उनका सुसमाचार ...

“और जो लोग ईमान लाए और उन्होनें नेक काम किए उनको खुशखबरी दे दो कि उनके लिये वे बागान हैं

जिनके नीचे नहरें जारी हैं| जब उन्हें इन बागान का कोई मेवा खाने को मिलेगा तो कहेंगे, “यह तो वही

मेवा है जो हमें पहले भी खाने को मिल चुका है”, क्योंकि उन्हें मिलती- जुलती सूरत व रंग के मेवे मिला करेंगे और बहिश्त में उनके लिये

साफ सुथरी बीवियाँ होंगी और ये लोग उस बाग में हमेशा रहेंगे।"

देखिये यहाँ जन्नत एवं कुँवारियों से दोस्ती का वचन उन लोगों को दिया गया है जो आस्था रखते हैं एवं

अच्छा काम करते हैं। अब देखिये यीशु मसीह के अनुग्रह से सुसमाचार जैसे मोक्ष की प्राप्ति होती है केवल विश्वास से, ना

कि अपने कृत्य के माध्यम से,जिसका हम अहंकार करें। कोई भी इंसान ईश्वर के सामने गर्व नहीं कर सकताकि वह

कर्म करता है और विश्वास करता है, बाइबिल के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का एक मात्र पथ है विश्वास। लेकिन जो कोई व्यक्ति कर्म ना

करके केवल उनके ऊपर विश्वास रखते हैं, जो भक्ति को ही धर्म घोषित करते हैं,उनके इसी विश्वास को नीतिपरायणता के नाम से गिना

जाता है, इसी के प्रभाव में दाऊद उनको सुखी कहकर घोषणा कर रहे हैं, जिनके पक्ष से ईश्वर उनके अधिनियमों को शीघ्र ही नीतिपरायणता का

लेवी करते हैं,अर्थात “सुखी वह हैं, जिनकी अपवादें छिपाई गई हैं, ढँका गया है जिनका पाप।

सुखी वह हैं, जिनका पाप प्रभु गिनते नहीं हैं।” यह है यीशु मसीह का

सुसमाचार। इस्लाम के पास एक और अन्य सुसमाचार है जिसमें कहा गया है आस्था रखिये और नेक काम कीजिये।

सिर्फ ये ही नहीं, पर जब आप यह किताब पढेंगे, तब आप पढेंगे कि यह मुहावरा “आस्था रखिये और नेक काम कीजिये”

अनेक बार प्रयुक्त किया गया है। इतना ही नहीं, इस पुस्तक के हर पृष्ठ पर ‘नरक’ का

उल्लेख किया गया है।अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम नरक में चले जाओगे,

अगर तुमने विश्वास नहीं किया तो तुम नरक में चले जाओगे।

यहाँ केवल यीशु मसीह पर विश्वास मोक्ष प्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि कुरान के अनुसार

विश्वास एवं सदाचार ही आपको मोक्ष प्राप्ति का रास्ता दिखा पाएंगे। केवल मात्र विश्वास करना ही

पर्याप्त नहीं है। उनके पाँच स्तम्भ हैं| मोक्ष प्राप्ति के लिये वे दिन में पाँच बार नमाज़ पढते हैं, एवं मक्का कि तीर्थ यात्रा

करके वहा जाकर भी खेल घनक्षेत्र के समक्ष नमन करके आते हैं, मोक्ष अर्जित के लिये| दोस्तों, यही है अन्य सुसमाचार इससे

पहले कि हम कुरान में मौजूद झूठे सिद्धांतों के बारे में और जानें, आइये पहले मैं आपको एक बुनियादी समझ देता हूँ

कि मुहम्मद कौन हैं और कुरान की उत्पत्ति कहाँ से हुई।

मुहम्मद एक पैगम्बर हैं, जो कि - साल पहले जिया करते थे, तो यह बात है यीशु मसीह के - शतक बाद की।

मुहम्मद एक लड़का था जो अरब में वास करता था एवं साथ ही साथ निरक्षर भी था, वह पढ़ या लिख नहीं सकता था।

जब वे वर्षीय हुए, तब वे कुरान को उद्घाटित करने लगे। वह एक गुफा में गए और वहाँ जाकर प्रार्थना

और ध्यान किया, और तभी ऐसा माना जाता है कि देवदूत गैब्रियल उनके समक्ष उपस्थित हुई एवं उनको पकड़ कर

बोली, “वर्णन करो”, तब वे बोले, “मैं कोई वाचक नहीं हूँ”| तब उस स्वर्गदूत ने उस पर इतना दबाव बनाया

कि वह इसे और सहन नहीं कर सका। मुझे नहीं पता कि वह एक घनिष्ट आलिंगन था या फिर गले से पकड़ा हुआ था,

परंतु फिर उस देवदूत ने उसे मुक्त कर दिया और फिर से बोली “वर्णन करो” मुहम्मद बोला,

“मैं कोई वाचक नहीं हूँ” ऐसा कई बार होता गया, जब तब उस देवदूत ने इन सभी शब्दों को उनसे

बुलवाया और उनसे कहा कि वह अब परमेश्वर का एक दूत होने जा रहा है, और

अब वह ईश्वर के शब्दों के इस संदेश को सब तक पहुँचाएंगे तो फिर उन्होनें इन सभी बातों का वर्णन किया

जो देवदूत ने उनसे कहा।

उस समय उन्होनें ये भी कहा कि उन्हें लगा कि शायद वह शैतान द्वारा अधीन कर दिये गये थे, यह उनकी

पहली चिंता का विषय था, वे चिंतित थे कि शायद पिशाच ने उन्हें अधीन कर लिया था।

परंतु फिर उन्हें एहसास हुआ कि यह परमेश्वर के ही वचन थे

एवं सचमुच देवदूत गैब्रियल उनके पास आई थी |

तो कुरान क्या है, मुहम्मद द्वारा कही गई मौखिक बातें, क्योंकि वह इसमें जोड़ते रहते थे,

एवं उन्होनें यह सब स्मरण करके बोला था। वह लिखना व पढ़ना नहीं जानते थे, इसलिये

सब कुछ उनके दिमाग में था। वह शायद लोगों को बोलते होंगे, सुनो मुझे कुरान का एक और अध्याय मिला है

और वह सबको यह ज़ुबानी बोलते एवं जिसको लोग दिल से सुनते। फिर लोग उसे लिखा करते एवं सबमें

प्रसारित करते। यह कुछ ऐसा था जो मुहम्मद के दिमाग में था, और आज भी कई मुसलमान कुरान

को याद कर लेते हैं। यह बाइबिल जितना लम्बा भी नही है। वे इसे पूरी तरह से गा-गाकर याद

किया करते हैं। तो यह उनका कुरान को प्रेषित करने का तरीका था। और मुसलमानों का मानना है

कि, कुरान इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि मुहम्मद एक सच्चे भविष्यवक्ता थे।

जितना हम सब बाइबिल को दर्शाते हुए कह सकते हैं कि, “देखिये इस भव्य किताब को!”

कुरान के बारे में यहाँ एक बात है, कि यह एक भव्य किताब बिल्कुल भी नहीं है। आप सब इसके

कुछ ही पृष्ठ में समझ जाएँगे कि यह किताब प्रभु की वाणी के सामने कितनी हीन है। सिर्फ इस पुस्तक को देखने

से ही आप समझ जाएँगे कि जो भी टेक्सेमार्स ने मार्चिंग टु सिय्योन के अंत में कहा है,वह आज तक के सबसे सच्चे

शब्द हैं। "जब लोग कुरान पढ़ने के बाद नए करार को पढ़ते हैं, तो वह ज़रूर इस निष्कर्ष

पर आते हैं कि यीशु प्रभु हैं, इन दो पुस्तकों के बीच कोई तुलना नहीं है।”

इस पुस्तक की गुणवत्ता साफ-साफ बहुत ही कम है, और यह स्पष्ट रूप से आदमी द्वारा दी गई मनगढ़ंत कहानियाँ हैं। इसलिये

अगर यही उनका सबसे बड़ा सबूत है, तो मैं इससे बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हूँ। चलिये अब कुछ

उन झूठे सिद्धांतों को देखते हैं, जो कि इस्लाम की इस पवित्र पुस्तक में ज्यादातर पाया गया है। यह किताब जो उनके

विश्वास की नींव है। उनका यह मानना है कि यही भगवान के साक्षात शब्द हैं! वे यह विचार

रखते हैं कि यह बाइबिल को पछाड़ सकती है, सबको पछड़ सकती है! यही बस अंतिम है| आइये नज़र डालते हैं

कुछ झूठे सिद्धांतों पर, जिसकी आड़ में नया सुसमाचार सिखा रहे हैं।

किताब के ठीक शुरुआत में ही, कुछ पृष्ठों के अंतर्गत ही अध्याय-, पद- में कहा गया है-

“और उस वक़्त को याद करो जब हमने फरिश्तों से कहा, कि आदम का सजदा करो, तो सब के सब झुक

गये मगर शैतान ने इंकार किया और गुरूर में आ गया और काफिर हो गया।” तो यहाँ शैतान का यही

गुनाह है कि वह आदम के सामने नहीं झुका एवं उसकी आराधना नहीं की। अब बाइबिल में ऐसा कहाँ

सिखाया है कि किसी को भी आदम को पूजने की जरुरत है? कि कोई भी देवदूत को आज्ञा दी गई है उसके सामने झुकने की और उसकी

आराधना करने की? यह एक असामान्य नकली सिद्धांत है। बाइबिल कहता है, “ तू प्रभु, अपने परमेश्वर को प्रणाम कर,

और केवल उसी की उपासना कर।” क्या ये आश्चर्यजनक नहीं है कि मुसलमान कोशिश करते हैं,

और हमारी समीक्षा भी करते हैं क्योंकि हम यीशु मसीह को पूजते हैं, जो कि इंसानों के रूप में देवता थे| किंतु वे

हमें अध्यापन करा रहे हैं कि आदम को पूजो, और भी जो-जो शैतान का अपराध था? अब यह एक और समानता है

मार्मनवाद के साथ। पैगम्बर ब्रिघम यंग (मार्मनवाद के दूसरे पैगम्बर) ने यह वर्णित

किया था कि आदम देवता हैं। अब मार्मन इस बात पर और यकीन नहीं करते हैं, लेकिन ब्रिघम यंग तो

यही पढा के गए थे, यह एक विचित्र असामान्य सिद्धांत है। यह बात इसी बात के समान है जो

यहाँ सिखाई जा रही है, पर क्यों कोई हमसे कहेगा कि हमें आदम को पूजने की ज़रुरत है, आदम के सामने नमन करने की ज़रुरत है?

बस यही बात कुछ समझ में नहीं आती है।

यह भी दिलचस्प है कि अध्याय- पद- में कहा गया है कि- “हमने मूसा को किताब

दी है और मोक्ष का रास्ता भी बताया है ताकि सब लोग ठीक से निर्देशित हो।” इसीलिये इस पुस्तक

के प्रत्येक भाग में यह दावा किया गया है कि मूसा की किताब ही प्रभु के शब्द हैं। असल में, इसमें पूर्व विधान एवं यीशु

की शिक्षाओं दोनों की पुष्टि भी की गई है। फिर भी इस पुस्तक की शिक्षाएँ नाटकीय ढ़ंग से मूसा के कानून अथवा

यीशु मसीह दोनों को खंडन करती है। फिर भी यह किताब इसी का अगला भाग होने का दावा करती है।

अध्याय- पद- में कहा गया है- “कह दो कि जो जिबरील का दुश्मन है, क्योंकि उस फरिश्ते ने खुदा के हुक्म

से तुम्हारे दिल पर असर डाला है और वह उन धर्मग्रंथो की तस्दीक भी करता है जो उसके सामने मौजूद हैं और ईमानदारों के लिए खुशखबरी है।”

क्या आपने सुना ये? धर्मग्रंथ मतलब रचनाएँ हैं। अध्याय-, पद- में कहा गया है “हमने मूसा को

किताब दी है और उनके बाद बहुत से पैगम्बरों को उनके कदम-ब-कदम ले चलें, और मरियम के ईसा को।” इस तरह

एक ही बात को बार-बार दोहराया गया है। पद- में कहा गया है “जब उनसे कहा गया कि खुदा ने नाज़िल किया है

उस पर ईमान लाओ, तो कहने लगे कि हम तो उसी किताब पर ईमान लाए हैं जो हम पर नाजिल की गई थी,

और उस किताब को जो उसके बाद आई थी नहीं मानते हैं। हालाँकि वह हक है और उस किताब की जो उनके पास है तसदीक भी करती है|"

अतः कुरानकेमुताबिक, कुरान बाइबिल को मंडित करता है, कुरान बाइबिल का ही विस्तार है।

बाइबिल का विरोध करने के लिये नहीं है, मगर फिर भी वह इसका लगभग अपनी सारी

शिक्षाओं में विरोध करता है।

मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूँ। व्यवस्थाविवरण के अध्याय- पर जाइये। अब देखते हैं कि यह किताब बाइबिल

में दी गई शिक्षाओं का पुष्टिकरण एवं मंडन करती है या नहीं। हम लोग केवल इस किताब को

छूकर देखेंगे यह देखिये इस किताब की शुरूआत, और यह देखिए सारे झूठे सिद्धांत और वह

सब स्थान जहाँ पर यह बाइबिल प्रभु के वचन का खंडन करती है। अब मैं आपको यहाँ पर कुरान

पढ़कर सुनाने वाला हूँ और यह दिखाने वाला हूँ कि कैसे इसने प्रभु की शिक्षाओं के शब्दों का खंडन किया है।

कुरान का अध्याय-, अध्याय- केवल मात्र संक्षिप्त परिचय है, और अब हम हैं अध्याय-

पर (उसे गाय कहा जाता है) जो भी मैं आपको दे रहा हूँ, वो सब इस गाय से दे रहा हूँ। यह प्रथम मुख्य अध्याय है,

और यह सब हमें गाय से मिल रहा है दोस्तों! तो हम अब एक तरफ हैं अध्याय- पर, जबकि दूसरी

तरफ है व्यवस्थाविवरण- पर (नहीं अध्याय- सुअर नहीं है, वह लोग सुअर का माँस नहीं खाते हैं)

गाय के अध्याय में पद्य - , तलाक के बारे में कहता है, “अग़र तीसरी बार भी औरत को तलाक़ दे, तो

उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह ना कर ले उसके लिये हलाल नहीं हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह

के बाद उसको तलाक दे दे तब अल्बत्ता उन मियाँ-बीवी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह

गुमान हो कि खुदा हदों को कायम रख सकेंगे और यह खुदा की हदे हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ-साफ बयान करता है।”

क्या आपने सुना? पहले इस चीज़ को समझते हैं कि सर्वप्रथम इस्लाम बहुविवाह और तलाक दोनों को सहमती देता है।

यहाँ यह बोल रहा है कि अगर एक आदमी अपनी पत्नी को तलाक देता है, तो वह उससे तब तक पुनर्विवाह नहीं कर सकता जब तक किसी दूसरे आदमी

ने उससे निकाह करके उसे तलाक न दे दिया हो, मगर बाइबिल यह नहीं सिखाता है! यह है मूसा कि व्यवस्था, जो कि

व्यवस्था विवरण अध्याय- में दिया है “यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याह ले,

और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उससे अप्रसन्न हो, तो उसके लिए

त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथों में देकर उसको अपने घर से निकाल सकता है| और जब वह उसके

घर से निकल जाए,तब दूसरे पुरुष की हो सकती है।

परंतु यदि वह उस दुसरे पुरुष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर

उसे अपने घर से निकाल दे, या वह दूसरे पुरुष जिसने उसको अपनी स्त्री कर लिया हो मर जाए,

तो उसका पहला पति, जिसने उसे निकाल दिया था उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी

पत्नी ना बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घ्रणित बात है।

इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी ना बनाना।”

तो बाइबिल हमें क्या शिक्षा दे रहा है? कि आप अपनी पत्नी को तलाक देने के

अनुमोदक केवल तब ही हैं जब आप उसमें कोई अशुद्धता पाते हैं। यही मतलब था यीशु मसीह का जब उन्होनें कहा था कि कोई

भी आदमी अपनी पत्नी को केवल व्याभिचार के कारण ही अपने से दूर कर सकते हैं। ध्यान दीजिए

उन्होनें परगमन के लिए नहीं, केवल व्याभिचार के लिए कहा। व्याभिचार वो है जो विवाह के पहले किया

गया हो। परगमन वह है जो विवाह के बाद, विवाह के रस्मों को तोड़ते हुए किया गया हो। पूर्व विधान के व्यवस्थाविवरण के अध्याय- में

यह अंतर्गत किया गया है कि “यदि कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ विवाह करे, यह सोचकर कि वह अछूती है, और जब उससे संगति

की तब उसमें कुँवारी अवस्था के लक्षण ना पाए, ऐसे में वह पुरुष अपनी विवाहिता को तलाक दे सकता है एवं

वह स्त्री किसी और पुरुष से पुनर्विवाह कर सकती है।” यहाँ उन लोगों की बात

नहीं की जा रही हैं जो सालों से दाम्पत्य जीवन यापन कर रहे हैं फिर भी अविरुद्ध नहीं है या फिर उनमें से कोई

वफादार नहीं है। बाइबिल कहता है- “अगर कोई नफरत के अधीन होवे तो तलाक दे दो।” यीशु मसीह ने फरीसियों

से कहा था- “जो ईश्वर द्वारा जोड़ा गया है, इंसानों द्वारा भिन्न नहीं होना चाहिये।” अगर ऐसा किया

भी गया हो, और वह भी व्याभिचार के अलावा किसी और वजह से, तब आप खुद मजबूर कर रहे हैं उसे

व्याभिचार प्रतिबद्ध करने के लिए, एवं क्योंकि उस समय वह स्त्री किसी

और वजह से छोड़ी जा चुकी थी वह उसे इसलिए तलाक दे रहे थे क्योंकि वे उसे तलाक देना चाहते थे। यीशु कहते हैं

कि यह वह नहीं हैं जो अभिप्रेत हुआ था। यह कुछ ऐसा था कि अगर वह उसमें अशुद्धता पाता है। इसका मतलब यह नहीं है

कि वह स्नान नहीं करती है, यहाँ अशुद्धता का अभिप्राय पाप से है। यह दर्शाता है यौन

पाप को, यह उसी को अशुद्धता कहता है, भले ही वो व्याभिचार हो या और कुछ्। इसलिये कहा

गया है कि पुरुष उसके पास जाता है और स्त्री को उसकी आँखों में इनायत नहीं दिखती क्योंकि उसने

उसको अशुद्ध पाया है, एवं तब वह उसे अलगाव के प्राप्यक लिख के दे सकता है और वह स्त्री किसी अन्य पुरुष से विवाह

भी कर सकती है। इसलिए सम्भोग किए जाने से पहले ऐसा कहा जाता है, रुको एक क्षण मैं पीछे हट रहा हूँ। यही

है बाइबिल की शिक्षा। जो बात यह वास्तव में स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं वह ये है कि अगर कोई पुरुष अपनी स्त्री

को तलाक दे दे, और वह स्त्री जाकर किसी अन्य पुरुष के संग विवाह कर ले, तब वह उस स्त्री के संग पुनर्विवाह कभी नही कर सकता।

तो इस तरह के हालात हमारे आधुनिक संस्कृति में कैसे पालन किए जाते हैं? आजकल के दिनों में लोगों के आए दिन तलाक होते

रहते हैं, हैं ना? बाइबिल में हमें पहले यह सिखाया गया है कि यदि कोई स्त्री और पुरुष तलाक ले लेते हैं,

तो भी वह पुनर्मिलन कर सकते हैं। यदि इनमें से कोई भी दोबारा शादी नहीं करते हैं, तो उनके लिए सबसे उपयुक्त

बात है पुनर्मिलन। बाइबिल में कुरिंथियों- में कहा गया है, वह पत्नी अपने पति से अलग ना हो,

और यदि अलग हो भी जाए, तो बिन दूसरा विवाह किए रहे,

या फिर अपने पति से मेल कर ले। बाइबिल आदर्श रूप से यह शिक्षा देता है कि यदि कोई युगल अलग-अलग

हो जाते हैं तो उनके लिए सर्वोत्तम विकल्प है पुनर्मिलन। मैंने ऐसा होते हुए भी

देखा है जब युगल एक साथ रहते हैं और फिर तलाक ले लेते हैं और वापस गिरजाघर जाते हैं, और प्रभु

के उपदेश की वाणी सुनकर वह तलाक लेने के पाप को समझते हैं, और फिर कहते हैं- “हमें फिर से एक

साथ होना है और मिलाप करना है।” तब वे पुनर्विवाह कर लेते हैं, जो कि एक स्मृद्ध बात है।

मगर बाइबिल में स्पष्ट रूप से लिखा है कि अगर एक बार तलाकशुदा पक्ष किसी और से विवाह कर ले,

तब उसका वापिस अपने पुराने पति के पास आ पाना और उसकी पुनः पत्नि हो पाना सम्भव नहीं है। बाइबिल के अनुसार

यह एक द्वेष है। इसलिए यदि लोगों का तलाक हो चुका है और उनमें से किसी ने भी दोबारा शादी नहीं की हो,

तब पुनर्मिलन की आशा हो सकती है। यह स्थिति ईश्वर की उत्तम इच्छा

से होगी, परंतु अगर उनमें से एक ने पुनर्विवाह कर लिया, तब ऐसा नहीं हो सकता।

तो कुरान हमें क्या सिखाता है? कुरान हमें यह विचित्र शिक्षाएँ देता है कि अगर वे तलाकशुदा हो चुके हैं,

तो वे एक साथ फिर से तब तक नहीं हो सकते जब तक वह स्त्री किसी अन्य से विवाह नहीं कर लेती एवं जब तक उनका भी तलाक

नहीं हो जाता। दुनिया में इसका कैसा उपयोग हो रहा है? चलिए मैं भी किसी से शादी कर लेता हूँ और इन सब

से बाहर निकल जाता हूँ और फिर तलाक भी ले लेता हूँ और फिर मैं एक साथ वापिस भी मिल सकता हूँ। यह विपरीत है!

यह मूसा की व्यवस्था का पुष्टीकरण कैसे कर सकता है, जब कि यह विपरित शिक्षा दे रहा है? पर

यही है जो मुसलमान सुविधापूर्वक कर रहे होंगे। किसी भी समय पर आप सैकड़ों विरोधाभासों

को दिखा सकते हैं, जो कुरान और मूसा की व्यवस्थाओं अथवा कुरान और यीशु मसीह के

शब्दों के बीच में है। यह है वो जो वो कहते हैं, “उसे भ्रष्ट किया गया है, उसके साथ छेड़छाड़ की गई है।"

तो मुहम्मद ने कुरान में कहा है कि यह सब पुराने शास्त्रों की, मूसा के शब्दों की एवं यीशु मसीह के

शब्दों की भी पुष्टि करते हुए कहा गया है, और मूसा और यीशु की निरंतरता को जारी रखता है। वह

मूसा और यीशु के अनुयाइयों को चुरा लेना चाहता है। जब मुसलमान धर्म का प्रचार करने की कोशिश करते हैं,

जो कि वो हमेशा करने की कोशिश करते हैं, वह यह है कि “ हम भी यीशु को प्यार करते हैं, हम भी यीशु में आस्था रखते हैं!”

वे सब कहते हैं “यीशु मसीह का कुरान में उल्लेख आपको बताता हूँ।” लेकिन जब आप उनसे कहेंगे कि

किसी भी शिक्षा को स्पष्ट रूप से परिभाषित कीजिए, तब वे

कहेंगे कि यह सब शिक्षाएँ भ्रष्ट हैं, वे कहते हैं कि पूर्व विधान को भ्रष्ट

किया गया है, केवल कुरान ही सही है। तो,

ये दावा करते हैं, मूसा और यीशु के अनुसरण का और इन शिक्षाओं को

अपनाने से इंकार भी करते हैं, यह कहकर कि ये भ्रष्ट हैं, और बदला गया है। तो क्या किसी ने पुराने दिनों में जाकर

व्यवस्थाविवरण को बदला है इसके विपरीत कहने के लिए? तो क्या ये वही कहता था जो मुहम्मद कहके गये? कि

आपको मूल व्यक्ति से पुनर्विवाह करने के लिए, किसी अन्य से विवाह कर तलाक लेना पड़ेगा?

नहीं, क्योंकि कोई भी विचारक व्यक्ति देख सकता है मूसा में क्या कहा गया है और फिर कह सकते हैं कि “अब समझ में आता है!”

और फिर वह कुरान में देख सकते हैं और कह सकते हैं कि “ यह समझ में नहीं आया।”

तो यह बहुत स्पष्ट है कि कौन सा भ्रष्टाचार है और कौन सा सही। तो यहाँ एक सीधा विरोध है।

सिर्फ ये ही नहीं, बल्कि इस किताब के उसी अनुभाग में जहाँ तलाक की बात हो गई है, वहाँ यह भी सिखाया गया

है कि बाल यौन शोषण ठीक है। अब मैं आप सभी का ध्यान मुहम्मद पर लाना चाहूँगा।

उनका विवाह कडेसिया नामक एक स्त्री से हुआ था। वह उनसे वर्ष बड़ी थी और उन दोनों ने काफी

सालों तक दाम्पत्य जीवन यापन किया। पर अंततः उन्होनें अपनी अगली पत्नि से विवाह किया(उन्होनें

काफी सारी शादियाँ की थी) प्रथम स्त्री के मृत्यु के पश्चात, उन्होनें कई बीवियाँ रखी और तथाकथित ईश्वर की वाणी

ने उन्हें जिससे विवाह करने का बोला था, वह वर्ष आयु की थी, उसका नाम आएशा था। ध्यान दीजिए तब

यह आदमी साल का था। मुहम्मद! तुम ठीक थे! तुम सही में दानव के अधीन हो गए थे

गुफा में। तुम्हें अपनी मूल प्रवृत्ति के साथ जाना चाहिए था। इसका मतलब यह हुआ कि ऐसा मान लिया जाए कि ईश्वर का

एक देवदूत आकर उनसे कहता है कि अब उन्हें एक वर्षीय से विवाह करना होगा! वो ये किसी को भी बताने

में शर्मिंदा थे। इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि वह किसी को भी यह बताते हुए शर्मिंदा महसूस कर रहे थे।

यह शायद कुछ इस प्रकार से हुआ था कि वह अपने घर पर थे और उनके घर पर साफ-सफाई करने वाली महिला उनसे कहती है

“कड़ेसिया के जाने के बाद अब आपको दोबारा विवाह कर लेना चाहिए।” मुहम्मद कहते हैं- “मैं किससे

शादी करू?” और उस महिला ने कहा, ‘या तो इस औरत से (उसने किसी औरत का नाम लिया )’ और उस या फिर इस

वर्षीय आएशा से, मुहम्मद कहते है ‘हम दोनो से निकाह करेगे!’।जब वह ९ वर्ष कि हुई तब शारीरिक संबंध स्थापित किए गए।यह

अपवित्र कृत्य है। यह घिनौना है! विकृत है और बाल यौन शोषण है! इसलिए मुझे ऐसा लगता है मुहम्मद

स्पष्ट रूप से एक बाल योन शोषक था तो यहाँ शायद हमें बाल योन शोषण के बारे में भी कुछ मिले।

मैने सिर्फ कुरान को खोला और इस किताब कि विषय सूची को देखा और यह देखा कि यहाँ पर

तलाक का एक अनुभाग है। जब मै उस अनुभाग पर नजर डाल रहा था, मेंने गौर किया कि इसमें तलाक से पहले प्रतीक्षा अवधि

का उल्लेख किया गया हैं जिस प्रकार केलिफोर्निया में महीने की सोचने की अवधी होती हैं, कुछ

उसी प्रकार से। कुरान में महिलायो का चक्र उल्लेखनीय हैं। तो क्या हुआ अगर तुम्हारी बीवी बड़ी उम्र कि है

और बाइबल के अनुसार अगर उनको मुत्यु कि प्राप्ति भी हो जाती हैं? यह है बाइबल कि व्यंजना।

मुहम्मद कहते हैं, "हम पंचांग के महीने के अनुसार चलेंगे या फिर यहाँ पर भी वही लागू होगा उनके

लिए जिनका अभी तक "मासिक धर्म शुरू नही हुआ।" क्यों आप ऐसी पत्नी से विवाह कर रहे है जिसका अभी तक मासिक धर्म शुरू ही नहीं हुआ?

पृष्ठ के तल में एक पादतिप्पणी भी कि गई हैं जिसमें कहा गया हैं:- "उनकी छोटी उम्र को मद्धे नजर रखते हुएँ,

बाल विवाह आम बात हैं ’’ हाँ, यह बिल्कुल सामन्य बात है विकृत पुरूषों के बीच में! यह बात अरब के बुतपरस्त

और विकृत पुरूषों के बीच कितनी सामान्य हैं मुझे इसकी परवाह नहीं हैं। जो भी मुहम्मद ने किया वह सब इसलिए किया क्योंकि

वह एक दृष्ट जगह में पले बड़े थे, जहाँ बुतपरस्तों के गुच्छे मूर्तियों कि और झूठे भगवानो कि पूजा करते थे, और तब वे एक नए धर्म

के साथ आए ,ओर सबसे कहा कि एक ही भगवान हैं, ओर मुहम्मद उसका पैगंबर हैं ओर उसने यह बुतपरस्त

का कूड़ा बरकरार रखा क्योंकि उनके आस पास के लोगो ने शायद इसे अंदेखा कर दिया होगा। अगर

यह वास्तव में सत्य भी हैं,तो यह वहीं है जिसका मुसलमान दावा करते हैं। अगर

उन्होने इसे अंदेखा कि तो वो स्वमतत्यागी का एक झुंड हैं! यह छिनौना है, दृष्ट है, और बाइबल में ऐसा कुछ भी नही सिखाया गया हैं।

असल में बाइबल ने इसका खंडन किया हैं।

चलते हैं कुरिन्थियों के अध्याय - ७ पर, बाइबल के पास सारे जवाब हैं, ओर बाइबल में बाल यौन शोषण कि निंदा भी की गई हैं।

कुरान में कहा गया है कि, "अगर उनके चक्र अभी शुरू नही हुएँ है,तो ऐसे हम उन्हे तलाक दे सकते हैं।"

यह अजीब है कि तुम किसी ऐसे से विवाह कर सकते हो जिसका अभी तक मासिक धर्म भी प्रारंभ नहीं हुआ हैं, यह

यह एक झूठा सिद्धांत है। बाइबल के अध्याय- पदय- में क्या कहा गया हैं, जरा देखिए, "ओर यदि कोई यह समझे कि

में अपनी उस कुमारिनी का हक मार रहा हूँ जिस की जवानी ढल चली हैं ओ प्रयोजन भी होए

जेसा चाहे, वैसा करे, इस में पाप नही, वह उसका ब्याय होने दे।’’तो अब आप

देख सकते हैं कैसे बाइबल अनुबंध करता हैं यहा कि विवाह से पूर्व लड़कियों का

ऋतुस्त्रव होना आवश्यक हैं । अब बाइबल में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया हैं, लैव्यवस्था के अध्याय - में जहाँ कहा

गया है कि ‘‘Flowers’’ का मतलब हुआ महिलाओं का ऋतुस्त्रव। बाइबल में लैव्यवस्था मे अध्याय केपदय संख्या में ये कहा

हैः- "और यदि कोई पुरूष उससे प्रसंग करे, और उसका रूधिर उसे लग जाए, तो वह पुरूष सात दिन तक अशुध्द रहे;

ओर जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब अशुदध ठहरे।" पदय में यह भी कहा गया है, "ओर

जो स्त्री ऋतुमती हो।" इसका मतलब ऐसा एक समय जब रक्तहानि हो।

"Flower" शब्द के संबंध में एक बार सोच के देखिए। हमें ऐसा लग रहा है कि यह शायद वनस्पितयों के ऊपर उगने

वाला कुछ होगा, लेकिन पुरानी भाषा के अनुसार इसका मतलब हुआ कुछ ‘प्रवाह’ करता हुआ। (FLOW) यहाँ पर यही

बात बोली गई हैं। यहाँ ये कहा गया है कि विवाह से पूर्व उसका ऋतुस्त्रव आरंभ हो जाना इस बात का आश्रय है

कि अब उसकी आयु हो चुकि हैं, वह शारीरिक रूप से परिपक्व हैं, और वह एक महिला के रूप में गर्भधारण

करने के उपयुक्त हैं। तो ६ अथवा ९ वर्षीयो के साथ विवाह करना क्या हैं? यह होता है बाल

यौन शोषको के लिए! यह साधारण लोगो के समक्ष कभी भी सामन्य नहीं हो सकता है; यह

केवल मात्र दृष्ट प्रवृत्ती के बदमाशों के लिए होता हैं। यह भी उतनी ही विकृत है जितनी कि बाइबल में सूची

कि गई पुरूषमैथुन, वहशीता आदि विकृत हैं। यह सब हीन कार्य हैं केवल मात्र जो छिनौने वासना के प्रति

खुद को अग्रसर करते हैं, वही लोग ही ऐसी कामना कर सकते हैं एक साधारण आदमी तो केवल एक महिला कि अभिलाषा करेगा, बच्ची की नहीं।

यह मलिन हैं, और कुरान में इसको मान लिया गया हैं। और मुहम्मद ने अपने जीवन काल में भी यही किया हैं।

मैंने कुरान को अपने व्यासपीठ पर रखा हैं, अगर आप इसकी जांच पड़ताल करना चाहते हैं, तो आपका

बहुत बहुत स्वागत है यह देखने के लिए कि यहाँ पर क्या लिखा है। मै उनकी आत्माओं को जीतने निकला था और

सैकड़ों मुसलमानों को मिल कर उनसे यह पूछा "आएशा का क्या हुआ?" ओर वे लोग हर बार इसी

बात की पुष्टि करते हैं कि, "हाँ उन्होने शादी कर ली थी वह ९ वर्ष की थी और उसके बाद से सब कुछ सामान्य था।"

कौन सी दुनिया मैं? मगर यही उनका एकमात्र जवाब होता हैं। ओर जब आप उनको यह विराधाभास

करवाने जाएँगे तो वे कहते हैं, "बाइबल यहा भ्रष्ट है, हम तो कुरान का ही अनुसरण करेंगे।"

यशायाह के अध्याय पर जाइएँ। कुरान में एक और सुसमाचार सिखाया गया हैं। कुरान का

अध्याय पद्य - सुनिए। कुरान में फेसले के दिन के बारे में कहा गया हैं, "और उस दिन से डरो जिस दिन

कोई शाख्य किसी की तरफ से न फिदिया दे सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न

उसका कोई मुआवजा लिया जाएगा और न वहा मदद पहुँचाए जाएँगे।" तो कुरान के अनुसार

फैसले के दिन कोई नहीं होगा कोई स्थानापन्न नही होगा कोई हिमायत नहीं होगी ओर नाहि कोई मुआवजा होगा।

अब बाइबल के यशायाह पद्य में क्या लिखा है ये देखिएँ (यह यीशु मसीह के बारे में बात हो रही हैं।),"इस

कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूंगा ओर वह सामर्थियों के संग लूट बांट लेगा;

क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिए उण्डेल दिया वह अपराधियों के संग गिना गया;

तौ भी उसने बहुतो के पाप का बोझ उठा लिया और अपराधियों के लिये बिनती करता है।"

यीशु मसीह ने पापियों के लिए बिनती करी! पद्य में कहा गया हैं, "परन्तु वह हमारे

ही अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कूचला

गया, हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं। हम तो सब के सब भेड़ो की नाई भटक गए थे,

हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के

अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।" यीशु हम सबके विकल्प है। भगवान ने यीशु की बात रखी

प्राचिन ओर नवीन विधान के अनुसार, हम सभी के अन्याय, हम सभी के अधर्मा की वजह से उनको कुचला गया,

ओर बाइबल में ये स्पष्ट रूप से लिखा हैं कि यीशु ने हम सब के लिए हिमायत कि थी। नवीन विधान के इन

शास्त्रों को सुनिएँ। मत्ती का वा अध्याय पद्य- कहता हैं, "जैसे कि मनुष्य का पुत्र वह इसलिये नहीं

आया कि उस कि सेवा टहल करी जाए परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे ओर बहुतों की छुड़ोती के लिए अपने प्राण दे।"

तीमुथियस के अध्याय- पद्य- को सुनिये, "यीशु ने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम दे दिया

ताकि उसकी गवाही ठीक समय पर दी जाए।" यीशु हमारा मुआवजा हैं, यीशु हमारा सथानापन्न है और यीशु हमारा हिमायती हैं।

हम लोगो को संचय करने का केवल एक ही रास्ता हैं यीशु ! यदि हम सभी का न्याय अपने

अपने कर्मो के अनुसार होता तो हम सब निन्दित होते। सभी ने पाप किया हैं ओर सभी परेम्ंश्वर की महीमा

से वंचित हैं! बाइबल में कहा गया हैं, "परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है

हैं", यही है वो छुटकारा जो मुसलमानो को नहीं मिलती हैं। फैसले के दिन उनके पास ना कोई रक्षक होता हैं;

और नाहि कोई पक्ष लेने वाला। उनके पास अपनी आत्मा का मुआवजा भी नही होता हैं।

हमारे पास हमारे उद्धारक के रूप में यीशु हैं जो हमारे पापों के लिए मृत्यु को प्राप्त हुए। उन लोगो का न्याय

उनके पापों के आधार पर होगा और उन्ही के पापों की वजह से वह मृत्यु को प्राप्त होगे। देखिएँ कुरान के अनुसार वे बच सकते हैं अगर वे कुरान का

अनुसरण करे एवं कुरान कि आज्ञा का पालन करे अथवा कर्म करें परंतु यहाँ एक बात है जिसमें हर एक मुसलमान पिछे रह जाता हैं।

हर मुसलमान एक बड़ा पापी है, ठिक उसी प्रकार से जिस प्रकार से हर ईसाई एक बड़ा पापी हैं। हम सब पापी है

अर्थात कोई भी पवित्र नही हैं, नहीं कोई नहीं। होशे के अध्याय - को देखिएँ, "में उसे अधोलोक

के वश से छूड़ा लूंगा ओर मृत्यु से उसका छुटकारा दूंगा: हे मृत्यु तेरी मारने की शक्ति कहां रही?

हे अधोलोक तेरी नाश करने की शक्ति कहां रही, में फिर कभी नहीं पछताऊगा।" यह एक शस्त्र हैं

जो कि कुरिन्थियों में उद्धत करा गया है। यीशु के सुसमाचार के बारे मे, उस तथ्य के बारे

में कि यीशु ने हमें अधोलोक कि शक्ति से बचाया हैं। इब्रानियों के अध्याय: पर जाते हैं, "सो यीशु

एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। वे तो बहुत से याजक बनते आए, इस का कारण

यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। पर यह युगानुयुग रहता हैं,

इस कारण उसका याजक पद अटल हैं।" इसे बदलने के लिए हमें तुम्हारी जरूरत नहीं हैं, मुहम्मद!

यीशु का याजक पद अपरिवर्तनीय था। वह पूरा हो चुका हैं, वह समाप्त हो चुका हैं, यीशु कह गए है, "देख में शीध्र

आने वाला हूँ।" उन्होने ऐसा तो नहीं कहा की में वर्ष बाद एक ओर

इन्सान भेजूंगा जो सब कुछ परिवर्तित कर देगा। नहीं बाइबल कहता हैं, "देख में शीध्र आने वाला हूँ ,

और हर एक के काम के अनुसार बदला देने का प्रतिफल मेरे पास हैं।" यीशु आ रहे हैं। और

हम सभी को इसी का इन्तेजार हैं। नाहि कि हम किसी ऐसे व्यक्ति का इन्तजार कर हरे थे जो अरब मे वर्ष

पश्चात आकर कहे कि सब कुछ भ्रष्ट हैं क्योंकि उसकी गुफा में गेब्रियल से बात हुई थी। यह नकली हैं।

उसे शापित होने दो।

मुसलमान निरंतर मुहम्मद को शुभकामनाएँ देते रहते हैं। वे कभी भी उनका नाम बिना ये कहे नही लेते

कि, "उन पर शान्ति बने रहे।" पेशाब करो उन पर। बाइबल मुहम्मद के लिए कहता है, "उसे शापित होने दो।"

मुहम्मद के ऊपर कोई आशिर्वाद नहीं है। बाइबल में कहा गया है कि, "जिसे तुमने

ग्रहण किया है, उस सुसमाचार को छोड़, यदि कोई और समाचार सुनाता है, तो श्रापित हो।" आप ऐसा कह सकते है कि, "आपको ऐसा नही कहना चाहिए

, क्योंकि ऐसा कहकर आप मुसलमानो को क्रोध दिला सकते है।" उसे शापित होने दो। पसंद या ना पसंद करो। मेरा

मुसलमानों को क्रोध दिलाने का कोई उद्देश्य नही है। मेरा उद्देश्य मुसलमानों को बचाने का है। मैं मुसलमानो

के पास यीशु मसीह का सुसमाचार लेकर पहुँचना चाहता हूँ। लेकिन यहाँ पर चुपचाप बैठे रहना और एक नकली पैगंबर

को सम्मान दिखाना, यह मुझसे नहीं होगा। अगर मुसलमनों को जीतने के लिए यही करना पढ़ेगा तो मैं

ईश्वर के उपर से मुसलमानों पर ऐसी जीत अर्जित कना नही चाहुँगा ।बाइबल मुझे आदेश देता है ऐसे लोगों को शापित होने देने के लिए|

मैं सभी धर्मो की श्रद्धा नहीं करता, क्योंकि कैन जब प्रभु के समक्ष

मेमने के रक्त के अलावा (फल और सब्जियां) अन्य चढ़ावा लाया था, तब प्रभु ने उसके चढ़ावे का सम्मान नहीं किया।

ईश्वर ने उसके धर्म का सम्मान नही किया। शोक मनाईये इन झूठे पैगंबरो का क्योंकि

यह सब भी कैन के ही रास्ते में अग्रसर हुए है! जब ईश्वर ने ही कैन का सम्मान नहीं किया, तो मैं भी उन सब का

सम्मान क्यों करू जो कैन के पथ पर अग्रसर है। कैन वही है, जो मुक्ति के कार्यो को आगे लाया, और हाबिल मेमने

का लहू लाया तो कैन ने हाबिल का कत्ल क्यों किया? क्योंकि बाइबल के अनुसार उसके स्वयं के कर्म दुष्ट

थे जबकि उसके भ्राता के कर्म सच्चे थे। इस्लाम के आध्यात्मिक कैन भी उसी प्रकार से धर्म के अविश्वासियों का कत्ल

करते रहेंगे। यह भी कुरान में लिखा है।

बाइबल के इब्रानियों पाठ्य - में कहा है, "इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते है,

जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते है, वह उन का पूरा पूरा उद्धार कर सकता हैं क्योंकि वह उन के लिये बिनती करने को सर्वदा जीविता है।"

यहीं हैं हमारी मोक्ष प्राप्ति का रास्ता; कि यीशु मसीह जीवत रहकर हमारे रक्षक बन गए ।

कुरान में कहा गया है कि कोई रक्षक नहीं है। केवल तुम्हारे गुणों को आधार है। तुम

अपराधी हो, अगर तुम इसको मानते भी हो तो भी तुम अपराधी हो । मुझे याद है एक बार मैं एक मुसलमान से बात कर रहा था, तो उन्होने

कहा कि, "मैं तो जन्नत में जाऊगी, क्योंकि मैं अच्छे कर्म करती हूँ, खंभो को मानती हूँ, और कुरान का

पालन करती हूँ।" तब मैंने उनको तर्क देना शुरू किया (ऐसा नही है कि मैं हर

किसी को उनके पापों का तर्क देता रहता हूँ और कहता हूँ यह सही नही है ) चुंकि वह वहाँ बैठी थी

और मुझ से बोल रही थी कि वह सच्ची है और जन्नत में जाएँगी, मैंने कहा, "ठिक हैं , तुम्हारे ठिक पीछे रखे हुए टी.वी.

को देखो ? इस पर जो जेरी स्प्रिंगर का प्रसारित हो रहा है उसक बारे में क्या ख्याल है? क्या ईश्वर तुम्हे

यही सिखाना चाहता है? क्या यह एक धार्मिक कार्यक्रम है? क्या ये भगवान का है? उसने कहा, "ओह अच्छा,

मुझे नही लगता।" मैंने पुछा, "कि तुमने अभी शॉर्ट्स क्यों पहने है? क्या तुम्हे कुरान में यही

सिखाया गया है? क्या मुहम्मद यही चाहते है कि तुम यही पहनों? वह संकोची हो कर कहती है "ओह

आप तो जानते ही है...." मैंने पुछा, "तुम्हारा स्कार्फ कहाँ है?" वह बोली, "वो..........." मैंने कहा, "ये सब

क्या हो रहा है? कुरान के अनुसार तो तुम नरक में जाओगी! और बाइबल के अनुसार भी तुम नरक में जाओगी

क्योंकि तुम यही नहीं मानती हो, कि यीशु प्रभु के पुत्र है। तुम्हारे बचने का केवल एक

ही रास्ता है, प्रभु यीशु मसीह पर आस्था।" मैं उसे यह सुसमाचार देने का प्रयास कर रहा

था कि वह जैसी भी है, यीशु मसीह की दया से जाएगेी। जैसा कि भजनी ने कहा है, "जैसा मैं हूँ एक दलील पर, पर

यह तुम्हारा रक्त मुझपर बरसा था, और वह मुझसे बोले तुम्हारे पास आने के लिए, परमेश्वर के मेमने मैं आया,

मैं आया।" यही है वो निवारण जो ईसाई धम्र प्रदान करता है। इसलाम आपको दिन

में दफा नमन करने कि सलाह देता है, मक्का कि यात्रा करने को कहता है, काफी सारे नियमों का पालन करने को कहता हैं, और क्या

आपको पता है? फिर आप सर्वश्रेष्ठ कि आशा करके बैठ जाते हैं क्योकि परमेश्वर विनीत और दयालू है। और आप यह उम्मीद लगा बैठते है कि

आपकी मोक्ष प्राप्ति निश्चित है क्योकि प्रभु आपके सभी दुष्कृत्य और

पाप अनदेखा कर देगे।

पतरस के अध्याय पर चलिए । याद रखिएगा कि हमने अभी तक कुरान के केवल एक ही अध्याय

पर नजर डाली है। कुरान में अध्याय है और हम अभी केवल एक पर प्रकाश डाल रहे है| हम

अब तक गाय पर ही है दोस्तो, एक अध्याय जो कि विधर्म से भरा पड़ा जैसा कि इसमें दावा किया गया है

वैसा इसमें पुराने शास्त्रों को पुष्टीकरण कतई नहीं किया गया है। कुरान के गाय के पद्य ९१ में क्या कहा है यह सुनिए ।

अब कहा गया है,"और तुम उनको जहाँ पाओं मार ही डालो। उन लोगों ने

जहाँ से तुम्हे शहर बदर किया है तुम भी उन्हे निकाल बाहर करो और फितना परदाजी खूनरेजी से भी बढ़ के है और

जब तक वह लोगमस्जिद हराम के पास तुम से न लड़े तुम भी उन से उस जगह न लड़ो । पर अगर

वह तुम से लड़े , तो बेखटके तुम भी उन को कत्ल करो । काफिरों की यही सजा है, फिर अगर वह लागे बाज रहे तो बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला

मेहरबान है । और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फसाद बाकि न रहे और सिर्फ खुदा ही का दीन रहा जाए ।

फिर अगर वह लोग बाज नही आए, तो उनपर ज्यादती करे । हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है,

सब हुरमत वाली चीजे एक दूसरे के बराबर है। पर जो शख्स तुम पर ज्यादती करे तो जैसी ज्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज्यादती

तुम भी उसपर करो ।" तो यहां वारंबार यही सूचित किया जा रहा है कि अगर कोई तुम पर आक्रमण कर रहा है तो उसे घात कर दो ।

उसपर आक्रमण करदो जो तुम पर आक्रमण करता है। कुछ पद्यो के पश्चात् पठ्य- में उसने यह कहा है कि, "तुम पर जिहाद फर्ज अनिवार्य है।"

यहा पर वह किसी आध्यात्मिक युद्ध कि बात नही कर रहे है । यहां पर बात कि जा रही है कि आक्षरिक तलवार

लड़ाइयों कि । जाओं और दुष्टो का नाश करों । वह कहते है, "तुम पर जिहाद फर्ज किया गया अगरचे तुम पर शाक जरूर है और अजब नहीं कि

तुम किसी चीज को पसंद करों हालाकि वह तुम्हारे हक में बुूरी हो और

खुदा जानता ही मगर तुम नही जानते हो।" खुदा जानता है और तम चुप चाप नहीं बैठ सकते हो,

क्योंकि उन्होने ऐसा कहा है कि जाओं और तब तक इन अविश्रवासियों को कत्ल करो जब तक ईश्वर का राज्य सर्वोच्च नहीं हो जाता।

क्या यीशु ने हमें यही सिखाया है? क्या यीशु ने हमें सिखया है कि, ’’तुम पर आक्रमण करने वाले पर आक्रमण करों?" क्या यीशु ने सिखया है

कि "तुम पर हमला करने वालो का वध कर डालो!" नही कतई नही । बाइबल ने पतरस के

अध्याय और पढ्य में क्या सिखाया है, सुनिये: "क्योकि यदि कोई परमेश्वर का विचार करके अन्याय से दुख

उठाता हुआ क्लेश सहता है, तो यह सुहावना है। क्योकि यदि तुम ने अपराध करके घूसे खाए और

धीरज धरा, तो उसमें क्या बढ़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुख उठाते हो और

धीरज धरते हो, तो यह परमेश्वर को भाता है । और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि

मसीह भी तुम्हारे लिये दुूख उठा कर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।

न तो उसने पाप किया, और न उसके मुह से छल की कोई बात निकली । वह गाली सुन कर गाली नहीं देता

था और दुख उठा कर किसी को भी धमकी नही देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ

में सौपता था।’’ बाइबल क्या कहता है? ’’जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे,

उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।’’ ’’मार डालो उसे’’, ऐसा मुहम्मद ने कहा होगा ’ उसने तुम्हारे गाल पर

थप्पड़ मारा, उसकी इसी क्षण हत्या कर दो!’’ उसने कहा होगा "ऐसा मस्जिद में नही करना, परंतु अगर वह तुम्हे

मस्जिद में ही थप्पड़ मारे, तो उन्हे मस्जिद में ही कत्ल कर दे! जहाॅ भी वह तुम्हें मिले, उसका वध कर दे ! और तब तक

हत्या करते जाए जब तक खुदा का धार्मिक शासन सर्वोच्च नही हो जाता।"

सुनिय, प्रभु का धार्मिक राज्य सर्वोच्च नहीं हो सकता है क्योकि जीवन प्राप्ति को जा राह जाता है वह बहुत संकीर्ण

हैं और बहुत ही कम लोगे उसकी खाजे कर पाते है । व्यापक तो वह पथ है जो विनाश कि ओर जाता है,

औरा ज्यादातार लोग इसी पथ पर अग्रसर हाते है। ऐसा कभी नही हो सकता है कि हम पूरी दुनिया को

बचा ले । ज्यादातर लोगो को बचाया नहीं जा सकता है! ईश्वर का पथ कभी भी सर्वोच्च नहीं हो सकता है , वह

संकीर्ण है। फिर भी वह कहते है "इन धर्म के बाधको को तब तक मारते जाईऐं जब तक प्रभु का राज्य सर्वोच्च नही

हो जाता।" परंतु बाइबल में ऐसा कतई नही सिखया गया है। कई लोग कहते है कि, "आप तो जानते ही है

कि, प्राचिन विधान भी कुछ इस प्रकार से था, प्राचिन विधान में भी यही गया था कि

सबकी हत्या करों।" नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था, संपूर्ण जाति का खात्मका करके और उनसे जबरदस्ती

धर्मपरिवर्तन करवाके बाइबल के प्रभु की अराधना करवाना , ऐसा कहां लिखा है प्राचीन

विधान में? हां अगर कोई बात है जिसे हमें अंकित कर सके तो वो यह है कि, प्रीभु ने खासतौर पर उन

इसराइल के बच्चों से कहा था, जो मिस्र की सरजमीन से कन्नान गए थे, एंव कन्नानों के उन कुछ विशिष्ट जाति

जो ईश्वर द्वारा शापित थे, को मिटा देना चाहा था और जो संभाव्यनीय मलिनतापूर्ण कार्य प्रतिबद्ध

कर चुके थे , और प्रभु ने यह भी कहा था कि चूंकि उन लोगो ने यह सब कृत्य किया है इसलिए उन्हें मिटा

देने की अत्यंत जरूरत है । उन्होने यह भी कहा है कि उसके लोग इन लोगों के साथ नही रह सकते क्योंकि यह लोग प्रचंड मात्रा में

विकृति और अपवित्रता का अभ्यास करते है। लैव्यवस्थ के और अध्याय में, वे लोगे किस प्रकार से विकृतिकरण करते थे,

इसकी सूची दी गई है , और यह दहला देनेवाला है। यही वह वजह है जिसके लिए वे वहां गए और उन्हें मिटा दिया। प्रभु ने ऐसा कभी नही

कहा कि, "पूरी दुनिया को बदलने के लिए युद्ध और तलवार की जरूरत है" उन्होने यह भी नहीं कहा है

कि इन लोगों को परिवर्तित करने करने के लिए जबरदस्ती करे । उन्होने तो बस यह कहा था कि, यह लोगे इतने भटक गए है

और विकृतिकरण के शिकार हो चुके है कि अब इन सब को राह से हटाने की आवश्यकता है। यह बात एक विशिष्ट जाति

के लिए कही थी। एक बार जब इसराइल के बच्चों ने आकर जमीन का उत्तराधिकार प्राप्य कर लिया, तो फिर आपने ऐसा

कहा देखा कि वे आगे जाकर और भी साम्राज्यों पर विजयी प्राप्त कर पाएँ? आपने ऐसा कहा देखा कि इस्रएल सम्राज्य यूरो

प, अफ्रिका और भारत, में गए और उनपर हावी हाने कि कोशिश की और यह कहा कि अल्लाह के अनुगामी बनने

के लिए धार्मन्तरण करे वरना हम तुम्हारी हत्या कर देगें? ना ही पूर्व विधान और ना ही नवीन

विधान में ऐसा कुछ लिखा है। यह झूठ हैं। यदि ऐसा कुछ पूर्व विधान में होता भी (जबकी ऐसा

नही है), हम लोग तो अभी नए करार में है, नवीन विधान में ऐसा कुछ भी नही लिखा है

कि यीशु ने कहा है कि हमें भौतिक युद्ध की दरकार है। आप दिखाईये मुझे कि नये विधान में ऐसा कहां लिखा

है कि हमें प्रभु के शत्रुओं से भौतिक युद्ध करना है। कभी नही । ऐसा कभी

नही सिखाया गया है। नवीन विधान में केवल यही सिखाया गया है कि अनर्थकारियों को सरकार द्वारा

उचित दंड मिलना चाहिए। कभी नही सिखाया गया है कि हम जिहाद के पथ पर अग्रसर हो और नाहि ऐसा कहा गया

है कि हमें लोगों का धर्म परिर्वतन करन के लिए एक धार्मिक जंग छेड़ने की जरूरत है और उन्हे बल का प्रयोग

कर सच्चे मजहब में लाने के लिए मजबुर करने कि जरूरत है। बाइबल यह नही सिखाता कि , जिसने तुम

पर आक्रमण किया है तुम भी उस पर आक्रमण करों। बाइबल नही कहता कि, "मूर्तिपूजको की हत्या करों"

वह कहता है , "बुराई के बदले किसी से बुराई न करो। जो बातें सब लोगों के निकट भली है उनकी चिनता

किया करों। हे प्रियो, स्वयं से बदला ना ले, बल्कि क्रोध को अवसर दो, क्योकि

यह लिखा है कि,"प्रतिशोध मेरा है , मै इसे चुकाऊँगा" यह प्रभु की वाणी है।" इसलिए अगर तुम्हारा दुश्मन

भूखा है तो उसे खत्म करे ! नहीं नहीं, यह इसके कहने का आक्षय नही है, वे कहते है " यदि तुम्हारा दुश्मन भुखा है तो उसे खिलाए, यदि प्यासा है

तो उसे पिलाए, क्योकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारो का ढेर लगाएगा ।

बुराई से ना हारो, परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।" यही बाइबिल का ज्ञान है ।

यह कुरान की दी गई शिक्षाओं के पूर्ण रूप से विपरीत हैं। यहां कहा गया है, "जहाँ तक हो सके, तुम अपने भरसक

सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।"

मुहम्मद के इतिहास को वापस देखते है.... तो मुहम्मद गुफा में जाते है, और उन्हे ये सपने

आने लगते है, वर्ष के प्रारंभ में, वे अपने कुछ अनुयायियों को कुरान पढ़के सुनाना प्रारंभ

कर देते है एवं उनके अनुयायियों की संख्या वृद्धि होने लगी और वे इनको सुरा व कुरान के अध्याय पढ़के सुनाने

लगे, लोग उन पर भरोसा करने लगे और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करने लगे और उन्ही के

गृहनगर में उन्हे सताया जाने लगा। उनका गृहनगर मक्का है। अंततः मक्का के मुसलमानों

को भी सताया जाने लगा , जिसकी वजह से उन्हे मक्का छोड़ना पड़ा । वे मक्का से दूर होके, मदीना में जा बसे।

तो मदीना वह जगह है जहाॅ मुहम्मद के सभी अनुगामी इकट्ठा होने लगे । मदीना एक मुसलमान नगरी के रूप

में स्थापित हुआ। तब मदीना के मुसलमानों ने यह तय किया कि वे मक्का के कारवां पर हमला करने कि प्रक्रिया प्रारंभ कर देगे । (मुहम्मद

को किए गए भगवान के आदेश के अनुसार) कारवां पर हमला करना इसका मतलब क्या है?

यहाँ इसका मतलब उस समय के कारवां से था जिसके माध्यम से लोग व्यापार कर,

धंधा कर, पैसे कमाते थे। वे व्यापारिक माल दूर दूर से ले आते थे । मुसलमान लोग घात लगाकर, उनपर

आक्रमण करके उनका समान चोरी करने की योजना बना रहे थे । क्या बाइबल में चोरी करना सिखाया गया है? जब तक वे लोगो

को मुक्ति का रास्ता नहीं मिलता तब तक क्या हम उनसे चोरी कर सकते है? नहीं, यह वह नही है, जो बाइबिल मे कहा गया हैं, यहां

कहा है, "तू चोरी न करना।" परंतु मुहम्मद ने कहा है कि , "अल्लाह चाहते है कि हम कारवाओं

को लूटे और मक्का के लोगों से सामग्रियाँ चुराएँ।’’ हम जानते है कि वे सब तो काफिरो का झुण्ड है

इसलिए हम उन्हे लूटेंगे, उनसे लड़ेगे, उन्हे मारेगे और जो भी हो सके। धर्मग्रंथ बाइबल

मं ऐसा कुछ भी नही लिखा गया है, और ना ही प्राचीन और नूतन विधान में ऐसा कुछ दिया गया है, ईसाई धर्म में ऐसा कुछ नही है।

यह तो केवल एक पैगंबर है जो शैतान के सिद्धांतों कि शिक्षा दे रहा है । (जिसकी सबसे अधिक संभावना

विवरण है।) या फिर स्वयं कि ही दुष्ट हृदय की कल्पनाएँ सुना रहे है। अगर आप इसके बारे

में सोचेंगे , तो पता चलेगा कि जिस देवदूत ने उनसे कहा था कि " वर्षीय से विवाह करो" उसी ने यह भी कहा था " कारवां

पर हमला करो , चोरी करो, मारो, लड़ों इत्यादि ।’" यह दुष्टता है कि वे शैतानों द्वारा उकसाएँ गए थे जो उनसे

बाते भी करते थे। तब उन्होनें कारंवा पर हमला करना प्रारंभ कर दिया और अंततः मक्का बनाम

मदीना में एक बड़ी जंग छिड़ गयी । जिसके फलतः उन्होनं एक बार फिर से मक्का पे नियंत्रण पा लिया।

साथ ही साथ उन्होने उस खेल धनक्षेत्र पे भी काबु पा लिया, जिसके बारे में मैं कुछ क्षण में बात करना चाहुंगा।

वे इसे ’काबा’ के नाम से संबोधित करते है।

काबा एक विशाल धन है। वे दावा करते है कि यह अल्लाह का आलय है और यह

एक पवित्र धार्मिक स्थल है। उनका मानना है कि इसका निर्माण मूल रूप से इब्राहिम और इसमाइल ने किया था। अब देखिए काबा

के बारे में कुछ रोचक तथ्य यह है कि, मुहम्मद के आने के पहले से ही मौजूद था। हुआ ये कि

अरब बहुदेववादी बुतपरस यहाँ पर अपने प्रभुयों कि आराधना करते थे। तो उनके

सभी मूर्तियाँ और झूठे देवताएँ, काबा में होते थे। तब मुहम्मद आकर इस स्थान पर कब्जा करके इसे

एक पवित्र स्थान बनाना चाहते हैं। तो वे सभी मूतियों को हटा देते है और उसके बाद भी वह

स्थान पवित्र ही रहता है, पूरे कुरान के अंतरर्गत, वे इन दुष्ट बुतपरस्त अरबों कि परंपराओं को ही मानकर चल

रहे है और यह दावा कर रहे है कि ये वास्तव में प्रभु कि देन है और इन लोगों ने उसके साथ

छेड़छाड़ कि है । यह खेल धन वास्तव में एक बुतपरस्त अरब मंदिर था, उनके झूठे देवतायों के लिए । मुहम्मद

आते है और वे कहते है कि इसका निर्माण इब्राहिम और इस्माइल द्वारा किया गया है। मुहम्मद ने

(गाय पाठ्य-) में क्या कहा है, सुनिये, "इब्राहिम व इस्माईल खनाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे और दुआ

मांगते थे, "ऐ हमारे परवरदिगार हमारी खिदमत कुबुल कर तु ही सनने वाला और जानने वाला है। ऐ हमारे

पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना, हमारी औलाद से एक गिरोह जो तेरा फरमाबरदार

हो।" यह सब की उत्पत्ति कहां है, यह मैं अवश्य जानना चाहुँगा । बाइबल में ऐसा कहा लिखा है कि

इब्राहीम और इस्माइल ने इस धन का निर्माण किया है? यह सब बनाई गई बातें हैं और बाइबल

ऐसे किसी भी वाक्या की पुष्टि नही करता, यह पूरी तरह से निर्मित बातें है। साथ ही मुहम्मद ने

यह भी कहा है कि, "सफा और मरवा खुदा की निशानियों में से है।" ये वह पहाड़ है जो बुतपरस्तों द्वारा पूजी जाती है।

मुसलमान यह कह सकते है कि, "उन्हे पुजना उचित है क्योंकि वे खुदा कि निशनियाँ है, ऐसा मत कहो कि

वह झूठे देवतायों के बारे में है।" मुहम्मद ने बुतपरस्तों के सभी प्रथाओं को अपनाया हैं।

जब वह मक्का की तीर्थयात्रा पर जाते है, क्योंकि वह स्तंभ जो इसलाम सिखाता है उसमें यह सिखाया

गया है कि, अपने जीवनकाल में न्यूनतम एक बार मक्का की यात्रा करना आवश्यक है। तब वे सब उस

घन के सामने झुककर , उसके आसपास चक्कर लगाते है, और उस घन के संबंध में सभी अनुष्ठानों की प्रक्रिया करते है।

जिसे मैं प्यार से "खेल घन" कहता हूँ।

पतरस द्वितीय के अध्याय - पर चलिए । देखते है कि बाइबल का क्या कहता है झूठे नाबियों के बारे मेें।

मुहम्मद भी तो यही है, एक मिथ्य नाबी। आप पुछ सकते हैं कि, इस बात का क्या सबुत है कि

वे एक झूठे पैगंबर है? तो यह इस तथ्य के आधार पर है कि उन्होंने प्राचीन और नवीन विधान में सिखाई गई हर

एक बात का खण्डन किया हैं। उन्होने मूसा के कानूनों का भी खण्डन किया है, और कुरान के

अंत में दी गई कुछ अंतिम शिक्षाओं में यह कहा गया है कि, "ईश्वर एक ही है और सनातन है, ना

उसने किसी को उत्पन्न किया है, और ना ही स्वयं उत्पन्न हुए है, कोई भी उनके समान नहीं है।" बारंबार यही कहा गया

है कि,"प्रभु का कोई पुत्र नहीं है।" और ये कि प्रभु कही से उत्पन्न भी नही हुए है। वे कहते है कि यीशु का जन्म

कुमारिनी से हुआ है, लेकिन वे यह भी कहते है कि उनका कोई पिता भी नही था। तो बजाय इसके कि प्रभु उनके पिता थे, वे कह

रहे है कि कोई पिता थे ही नही । वे केवल एक ही व्यक्ति द्वारा जन्म दिए गए है । यह बात कुछ समझ नही आती है। यह प्रभु

द्वारा दिए गए शिक्षायों का बेशक खण्डन करते है। अब पतरस के झूठे पैगंम्बरों पर दिए गए अध्याय -

पर वापिस आइऐ, बाइबल कहता है, "और जिस प्रकार उन लोगों में झूठे भविष्यद्वक्ता थे, उसी प्रकार तुम में

भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करने वाले पाखण्ड का उद्धाटन छीप-छपाकर करेगे ,और उस स्वामी का जिस ने उन्हे

मोल लिया है इन्कार करेंगे (बेशक मुहम्मद अस्वीकार करते है कि यीशु प्रभु के पुत्र है) और अपने आप को शीघ्र विनाश में

डाल देंगे और बहुतेरे उन की नाई लुचपन करेंगे, जिनके कारण

सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी। पद्य- पर नजर डालिऐं, "उनकी आंखों में व्यभिचार बसा हुआ

है , और वे पाप किए बिना रूक नही सकते, वे चंचल मन वालों को फुसला लेते है , उनके

मन को लोभ करने का अभ्यास हो गया है, वे सन्ताप के सन्तान है...।" यह विवरण मोहम्मद पर दुरूस्त बैठता है।

कारवां पर हमला करना, चीजे चुराना, यह सब लोेभी प्रथाऐं होती है। जैसे पराऐं व्यक्ति

की स्त्री पर लोभ करना । वे एक महिला के बाद दूसरी महिला और दूसरी महिला के बाद और भी अन्य महिलाओं से विवाह रचाते गए ‍! उनकी आंखों में वह लालसा थी जो कभी भी संतुष्ट

नहीं हो सकती थी। आपको पत्नियों से शादी करने कि क्या जरूरत है? वह इसलिए क्योंकि आप अपने पास मौजूद चीजो से

तृप्त नहीं हैं । या फिर इसलिए कि आप अपनी युवाकाल की पत्नी का आनंद उठाकर तृप्त नहीं है ।

यह सब मुहम्मद पर दुरूस्त बैठता है। यहूदा पे चलते है यहूदा वह समानांतर अंश है कि उसके दो पृष्ठ पश्चात दिया

गया है , जहाँ पर बाइबल ने झूठे पैगंबरो का वर्णन किया है। पद्य- कहता है, "प्रिय मित्रो, यद्यपि मैं बहुत चाहता था

कि तुम्हे उस उद्धार के विषय में लिखूं जिसके हम भागीदार है, मैंने तुम्हें लिखने की और तुम्हे प्रोत्साहित

करने की आवश्यकता अनुभव की ताकि तुम उस विश्वास के लिए संघर्ष करते रहा जिसे परमेश्वर ने संत जनों को

सदा सदा के लिए दे दिया है। क्योंकि हमारे समूह में कुछ लोग चोरी से आ घुसे है। इन लागों के दण्ड के

विषय में शास्त्रों ने बहुत पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी । ये लोग परमेश्वर विहीन हैं । इन लोगों ने परमेश्वर के अनुग्रह को भोग-विलास का एक बहाना

बना डाला है तथा ये हमारे प्रीभु तथा एकमात्र स्वामी यीशु मसीह को नही मनते"। पाठ्य को देखियें, "जिस रीति से

सदोम और अमोरा और उनके आस पास के नगर, जो इन की नाई व्यभिचारी हो गए

थे और असामान्य शरीर के पीछे लग गए थे आग के अनन्त दण्ड में पड़ कर दृष्टान्त

ठहरे है । उसी रीति से ये स्वप्नदर्शी भी अपने अपने शरीर को अशुद्ध करते और प्रभुता को तुच्छ

जानते है’ और ऊँचे पद वालो को बुरा भला कहते है।" मुहम्मद ने यह स्वप्न में देखा था कि उनके ख्याल से उन्हे एक वर्षीय

से ब्याह रचाना है अगर इसको एक मलिन स्वप्नदर्शी नही कहते तो मुझे नही पता कि इसे और क्या कहकर संबोधित किया जाता है । इसमें कहा है,

"असामान्य शरीर के पीछे लगना।’’ बच्चों को अटपटा शरीर ही कहेगें। यह एक पुरूष के लिए असामान्य बात है कि वो एक

बच्चे के शरीर के पीछे जाए। इसलिए उनका वर्णन एक झूठे पैंगबर के रूप में किया है। ,

मुसलमानों को यह बात समझने कि जरूरत हैं कि नया करार के अनुसार, यह कुरान से भी बद्त्तर पुस्तक है, क्योंकि नए

करार की केवल एक ही अध्याय कि महानता, संपूर्ण कुरान की पुस्तक

से कई ज्यादा है! प्रभु यीशु मसीह हमें निष्कृति! मौक्ष! मध्यस्थता! सुसमाचार आदि प्रदान कर रहे है।

यदि आप बाइबल में विश्वास रखते है, तो आप जान पाएंगे कि इसमें मुहम्मद का वर्णन एक झूठे पैगंबर के रूप में किया गया है।

यहा उनकी बिल्कुल सही व्यख्या कि गई हैं। एक और चीज जिसे मैं बिस्तरबंदर करना चाहता हूँ अब तक को मैंने

गाय अध्याय के सारे अध्यायों पर चर्चा कर ली हैं, अब मैं जिस अध्याय पे बात करना चाहता हूँ वो अध्याय यीशु और मरियम को सामने लाता है।

मुझे थोड़ा समय दिजीए ताकि मैं अपनी टिप्पणियों में इसे ढूंढ़ सकू। (पन्ने पलटाते हुए ) यह वासतव में अध्याय - में है। इस अध्याय

का नाम है सूरह आले इमरान । इमरान यहाँ अम्राम के नाम से सम्बोधित किये जा रहे है। अब अगर आप अपने बाइबल

को जानते है तो आपको पता होगा कि अम्राम किसके पिता थे? क्या आपको अम्राम और

योकेबेद याद है? उनके बच्चे कौन थे? उनके बच्चे मूसा, हारून और मरियम थे।

अरबी में मैरी को मरियम कहा जाता है| यह वहीं पुराने विधान का चरित्र है| तो

वे एक ही नाम प्रयोग करते थे। अब चूंकि मुहम्मद निरक्षर थे, तो उन्होंने मूर्खतापूर्ण गलती कि

(कुरान भर मेें) यह सोचकर कि जो मरियम, हारून और मूसा कि बहन थी वह वहीं मैरी

है जो यीशु की माता थी। उसके साथ समस्या यह हुई कि, वे लोगे लगभग वर्षो के

अंर्तकालिन रहे थे । आप जो भी विश्वास करते हो, जो भी आपका धर्म है, पर यह सब तो ऐतिहासिक आंकड़े है।

यहाँ तक कि एक नास्तिक भी आपको यह बता सकता है कि यीशु नासरी एक वास्तविक व्यक्ति थे, कोई भी

कोई भी यह तो जरूर ही जानता है कि मूसा, यीशु मसीह से बरीब करीब वर्ष पूर्व थे । सोच के देखिऐ, मूसा के पश्चात

वर्ष न्यायाधीशों के थे, फिर राजाओे (शाऊल, दाउद, सुलैमान आदि के वर्ष)

का समय था । उसके बाद आया नबात का पुत्र यारोबाम जो उत्तरी राज्य को वर्षो के लिए

पा कि और ले गऐ । तो योग योग और फिर एक और वर्षो का योग, तो आप लोग देख सकते

है कि यह एक लम्बी समयावधि है। यह एक अत्यंत मूख गलती है, मूसा की बहन

मरियम और (उनकी भाषा में) मरियम, यीशु की माता के नामों को उलझा देना ।

यह कुछ ऐसा है जिसे आप केवल एक छोटे बच्चें से ही उम्मीद कर सकते हो, जहाँ वे यह सोचते है कि निर्गमन का चरित्र और मत्ती

का चरित्र एक ही है। सोच कर देखिए, निर्गमन और मत्ती कितने अलग अलग है।

चूंकि वह निरक्षर है और चूंकि वह नकली शिक्षक है इसलिए वे यह गल्ती करते हैं।

तो सूरह आले इमरान में मरियम के जन्म कि बात की गई है एवं मरियम द्वारा यीशु को दिए गए जन्म कि भी इसमें वर्णना कि गई है।

इसमें कहा गया है, "मरियम, इमरान की पुत्री।" क्योंकि एक बार फिर यही माना जा रहा है कि यह

एक ही व्यक्ति है । पृष्ठ के तल में दिए गए पाद टिप्पणी में कहा गया हैं कि "कुरान में, अम्राम भी

कुंवारी मरियम के पिता है।" चूंकि यहां उनके बारे में एक ही व्यक्ति समझ कर, बात कि जा रही है ।

कुछ लोग इसे यह कह कर ढंकने कि भी चेष्टा करते है कि," यह सचमुच एक समान नहीं हैं, बस संयोगवश

दोनों के नाम अम्राम है, लेकिन ये दोनों अम्राम भिन्न है।" यह वह सबूत हैं जिससें ये

साबित होता है कि ऐसा नही है। अगर आप आगे बढ़कर कुरान के वे अध्याय पे जाएँ, पठ्य- में

इसकी बात कही गई है कि कैसे मरियम प्रस्थान करके रेगिस्तान में चली जाती है और एक शिशु के साथ वापिस आती हैं।

यह बाइबल में दी गई शिक्षा से पूरी अलग है, बाइबल में सिखाया है चरनी के बारे में, सराह में जगह न होने के बारे में और जोसफ के वहां मौजूद होने

के बारे में, जो कि कुरान में दी गई कहानी से पूर्ण रूप से अलग है। कुरान में कहा गया है, "बच्चें को उठाकर लोग उससे कहने लगे,

मरियम! तुमने सचमुच शर्मनाक काम किया है।" वे ऐसा इसलिए कह रहे थे क्योंकि वह चली गई

थी और जब वापिस आई तब उनके साथ एक बच्चा भी था। इस कथा में कोई जोसफ नहीं हैं, मरियम

बस रेगिस्तान में चली जाती है और एक शीशु के साथ वापिस लौटती है! "मरियम!

हारून की बहन। तुमने निःसंदेह लज्जाजनक कार्य किया है।" हारून की बहन??? तो कुरान केवल यही नहीं कहता कि

अम्राम उनके पिता हैं, साथ ही साथ यह भी कहता है कि हारून उनका भाई है! मुहम्मद

ने सही मायने में प्राचिन विधान के मरियम के साथ नवीन विधान के मरियम को उलझा दिया है, चूंकि अरबी

में यह एक ही नाम था। कुरान के इस संस्करण के पृष्ठ के अंत में दिए

गए पाद टिप्पणी में यह कहा गया है कि, "ऐसा प्रतीत होता है कि मरियम, जो कि हारून की बहन

थी और मरियम जो कि यीशु की माता थी, वह एक ही व्यक्ति थे।" यह आश्चर्यजनक हैं कि वे दोनो

सैंकड़ो वर्षो के अंतराल में जिएँ! परंतु अगर आप निरक्षर हो और बाइबल नहीं पढ़ सकते,

तब ऐसी गल्तियाँ होना तो स्वाभाविक है। आप बाइबल के अस्पष्ट ज्ञान की सुनी सुनाई

बातों को लेकर चलेंगे तो ऐसा ही होगा।

कुरान में जारी किया गया है कि, "हारून की बहन! तुम्हारे पिता तो कभी रंडीबाज नही थे, ना ही तुम्हारी माता रंडी

थी। उसने उनके सामने एक चिन्ह बनाया, बच्चे की ओर ईशारा करते हुएँ।" (वह उस समय बात

नहीं कर पा रही थी और मूकता का शिकार हो गई थी।) तो वह बच्चे कि ओर ईशारा कर रही है, और वह सब लोग पुछते है, "हम

इस पालने में रखे बच्चे से कैसे बात कर सकते है? तभी जिस बच्चे कि बात कि जा रही थी वो बोल उठा।" तो यह

हैं नवजात शिशु यीशु। वह कहते है, "मैं भवगान का सेवक हूँ (बोअज को यहां उपर ले आए, मुझे एक दृश्य

साधन कि आवश्यकता है यहाँ)। मुझे पता है कि यह सम्भावत सबसे अच्छा उदाहरण नहीं है क्योकि यह सबसे कम उम्र का बच्चा है, जो मेरे पास अभी है, दोस्तों। कुरान

में तो नवजात शिशु की बात कि गई है। तो यह हैं जो कुरान में लिखा है। (बच्चे के साथ दिखाते हैं)। तो नवजात यीशु

ने कहा, "मैं भगवान का सेवक हूँ, उन्होंने मुझे यह किताब दी है और मुझे अपना पैगंबर विहित

किया है। मैं जहाँ भी जाऊँ उनका आशीर्वाद सदैव मेरे ऊपर रहेगा, और उन्होने मुझे गौरवान्वित प्रार्थना

में दृढ़ रहने के लिए कहा हैऔर जब तक मैं जीवीत रहूँगा तब तक भिक्षा देने कि आज्ञा दी हैं। उन्होने मुझे आहवान

किया है कि मैं अपनी माँ का सम्मान करू और मुझे शुद्ध किया है धमंड और दुष्टता से। मुझ पर मेरे जन्म के दिन, मेरे मृत्यु के दिन और पुन: जिवीत

होने के दिन भी शांति बनी रहे। (पादरी एंडरसन यह समझाते हैं

कि वे बच्चे के द्वारा पठन को और भी वास्तविक बनाना चाहते थे और बच्चे को मरियम नाम कि एक महिला को वापस सौंप देते

हैं, वह परिहास करते है कि यही महिला निर्गमन और मत्ती में भी थी!) यह कहना कि निर्गमन और मत्ती में भी थी! यह कहना कि निर्गमन

की मरियम वहीं मरियम थी जो यीशु कि माता थी, इसी बात के समान हैं कि यह वही

मरियम हैं। सैकड़ो वर्ष पूर्व भी यह एक जैसी ही परिस्थितियाँ

मौजूद थी। यह एक एसी ही गलती हैं।

दोस्तों यह किताब एक निरक्षर झूठे पैंगबर द्वारा लिखी गई हैं जिसने अपनी वासना के अनुसार झूठे

सिद्धांतो का प्रचार किया। कि चलों कारवां को लूटा जाएँ (मुहम्मद कि आवाज में) और

अरब पर कब्जा किया जाएँ! उनके पास स्वयं के लिए सत्ता का कुछ झुंड था, जो कि कुछ अनुगामी द्धारा संचालित किया गया था।

शायद उन्होंने ये सब इसलिए कया क्योंकि वे ११ पत्नियाँ चाहते थे! या फिर शायद वे यह चाहते थे कि सब उनके

सामने आकर झुके जैसे कि वह, "अब तक के सबसे बड़े नबी हैं, यीशु से भी बड़े।" नहीं! यीशु से बड़ा कोई नहीं हो सकता हैं

क्योंकि यीशु का नाम ही सभी नामों से श्रेष्ठ हैं। यह मनुष्य एक नकली पैगंबर

था जिसे अपनी सभी शिक्षाएँ या तो शैतान से मिली या फिर स्वयं अपने हृदय से मिली, पर मेरा यह मानना

हैं कि उन्हे ये शिक्षायें राक्षसों से ही मिली हैं। क्योंकि आप केवल मात्र शैतान कि ही सहायता से . अरब अनुयायी पा सकते हैं। मुझे नही

लगता कि ये वह केवल अपने दम पर कर सकता था। उनमे यीशु के खिालाफ दुष्ता, गंदगी ओर निन्दा

भरा हुआ था । यह एक दुष्ट धर्म है जो शुरूआत से हीं हिंसक थी। मैं आपको कुरान के शुरूआत के पद्य पढ़कर सुनाता हूँ बाद में और भी बहुत कुछ हैं। इसमें

आप कुरान के बहुत शुरुआत से छंद, बाद में बेशक वहाँ और भी है।

शुरूवात में ही कहा गया हैं कि चलो कारवां पर हमला करते हैं, चलो युद्ध करते हैं, चलो हत्या

करते हैं। उसने उनसे कहा, "मैं तुम्हे हत्या करने का आदेश देता हूँ!" उन्होने लड़ाई शुरू होने से पहले

ही कह दिया था, "मक्का के आगंतुको, मैं तुम्हे हत्या करने का आदेश देता हूँ, मार डालो सबको।"

अब आप कहेंग, "इस धर्मोपदेश का उद्देश्य क्या हैं?" यह इसलिए है क्योंकि आज हम

कलीसियाई एक्तावाद के युग में वास कर रहे, जहाँ लोग यह कहने कि कोशिश कर रहे है कि ईसाई धर्म और इस्लाम

में कोई भी अंतर नहीं है। यह इस दुनिया के रिक वारेनस है, जब वे

एल्टन जाॅन से हाथ नहीं मिलाकर कहते हैं, "इसलाम के साथ हमारी क्या क्या समानता है, उसपर ध्यान केन्द्रित करते है।"

हमें हमारे ओर उनके बीच का अंतर स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए, हमारा इसलाम से कोई वास्ता नहीं हैं।

इसलाम एक दुष्ट धर्म हैं, परंतु मैं यह भी कहना चाँहूगा कि मुझे मुसलमानों से बिल्कुल भी नफरत

नहीं हैं। असल में मैं मुसलामानो से बेहद प्यार करता हूँ और उन्हें बचाना चाहता हूँ ओर उन्हे बचाना चाहता हूँ। क्या मैं मुहम्मद से नफरत करता हूँ?

हाँ। क्याँ में कुरान से नफरत करता हूँ? हाँ, पर मैं मुसलमानो से बिल्कुल भी नफरत नही करता हूँ। बहुत से ईसाई उनसे नफरत

करते है और यह गलत है। मैं मुसलमानो से बहुत प्यार करता हूँ और जब भी मैं उनसे मिलता हूँ उनसे सज्जनतापूर्वक पेश आता हूँ। मैं उनके पास

जाकर यह नहीं कहता हूँ कि, "तुम लोग क्या सोचकर इस पर विश्वास करते हो!?! मैंने इस किताब कि एक

प्रति खरीदकर यह जाना कि यह किताब मेरी आजतक कि पढ़ी गई सभी किताबों में से सबसे मूर्खतापूर्ण किताब है।" अगर में ऐसा कहु भी तो यह

सच्चाई ही हेागी। यह किताब बकवास हैं। पर यह वो नहीं है जो में उनसे कहता हूँ बल्कि मैं उन्हे जाकर सुसमाचार

सुनाता हूँ। मैं उन्हे बाइबल के उद्धरण और धर्मग्रंथ दिखता हूँ। मैं सिर्फ उनको यही बता रहा हूँ कि वह एक नक्ली धर्म

को मानते हैं, पर FWBC (फैथ्फुल वर्ड बैप्टिस्ट चर्च) के दायरे में रहकर

उन्हे शापित होने दे! मैं चुपचाप बैठकर इनसे शर्माकर दूर नहीं रहने वाला। अब मैने दूसरे

लोगो से यह सुना हैं कि, टेम्पे में एक आदमी ने हाल ही मैं उदाहरण के तौर पर, टेम्पे के एक मस्जिद

में जाकर जोर जोर से चीखते हुए कुरान को फाड़ दिया। दोस्तो, कुरान को फाडिएँ नही,

आप इसलाम के खिलाफ सबसे घातक सबूत को क्यों मिटाना चाहेंगे? आप उसे क्यों जलाना चाहेंगे? यह मुहम्मद और इसलाम

के धोखेबाज होने का सबसे बड़ा सबूत हे। हमें जाकर लागों को

मारकर उनका धर्मान्रित करने की आवश्यकता नहीं है, क्योकि हम जिसकी आस्था करते है, उसमे वास्तव में शक्ति हैं।

यह है यीशु का सुसमाचार। हमें मुसलमानों के साथ जो करने कि जरूरत हैं वह यह नहीं हैं, कि हम जाकर उनका

उद्देश्य जाने कि उन्होने क्यो कुरान को फाड़ा ओर मस्जिद में चीत्कार कि, क्योंकि इस

समय यह घृणित हैं और इसका प्रयोजन तब केवल मुसलमानों को बचाने का नहीं रहता हैं।

आप यह कह सकते है कि, "यह उपदेश भी तो मुसलमानों को बचाने के उद्देश में काम नहीं कर रहा हैं।" आज यहा पर कितने

मुसलमान हमारे साथ मौजूद हैं? शुन्य। तो अगर आज इस सभागार में शुन्य मुसलमान

हैं तो मैं अपना उपदेश मुसलमानों को बचाने के प्रयोजन में क्यो रखूंगा? क्या कोई मुझे यह समझा

सकता है? तो क्या मेरा यह धर्मोपदश बर्बाद नही हो जाता ! मैं ईसाइयो को उपदेश दे रहा हूँ! मैं लोगो को उपदेश दे रहा हूँ

जिन कि मुक्ति निश्चित हैं ताकि वे यह समझ ले कि जो हम लोग मानते हैं वह स्पष्ट हैं, और जो वह लोग

मानते हैं वह असत्य हैं। मैं आपको वही अध्यापन सिखा रहा हूँ और मैं आपको कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत

कुरिन्थियों, व्यवस्थाविवरण, गलातियो, मत्ती , यशायाह आदि से सिखाने में सक्षम हूँ । आज रात

आपने सच्चाई , रक्षा के बारे मे, और कैसे यीशु मसीह ही हमारे फिरौती हैं, तलाक के बारे में जाना और यह जाना कि बाइबल

एक लड़की के विवाह आयु पहुचने के बारे में क्या कहता हैं,

मुसलमानो का अल्लाह और इश्वर एक नहीं हैं, क्योकि यदि आपका पुत्र को ही नहीं मानते, तो आपका पिता

भी नहीं होंगा! "जो कोई पुत्र को इन्कार करता हैं उसके पास पिता भी नहीं।"

वे अन्य देवता को पुजते है, अन्य सुसमाचार का मानते हैं, और मेरा आज का उद्धेश्य आप सभी को

ईस्लाम के खिलफ जगाना और भड़काना नहीं , ताकि आप लोग जाकर उनसे नफरत करे। नही,

मुसलमानों को प्यार करे।

में आशा करता हूँ कि आज रात इस उपदेश को सुनने के बाद, आप में यीशु का सुसमाचार

मुसलमानों तक ले जाने कि इच्छा जागृत हो जाँएगी। अगर आप बिना इस इच्छा को जागृत किए यहाँ से चले जाते हैं तो आप प्रभु के साथ सच्ची

तरह से नहीं हैं। यदि आप यहाँ से इस मनोदृष्टि के साथ जाते हैं कि, उनपर हमला करों! उन्हे मार डालों!

तो भी आप सच्ची तरह से ईश्वर के साथ नहीं हो। आपको इन खोए हुए इन्सानों के प्रति प्रेम कि भावना

रखनी चाहिएँ। अब कुरान में सुरह आले - ईमरान के प्रथम में ही यही कहा गया हैं, ‘‘ईश्वर अपने अविश्वासियों से प्रेम

नहीं करते हैं ।’’ अब क्या बाइबल हमें यही शिक्षा देता हैं? नहीं, बाइबल कहता है, "परन्तु परमेश्वर हम पर अपने

प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता हैं , कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।" पर यहाँ कहा गया हैं, "ईश्वर

अपने अविश्वासियों से प्रेम नही करते हैं!" हम लोगों में ईसाइयों के रूप में, कुरान कि मनोदृष्टि नहीं होनी चाहिएँ।

यह, सबको मर डालो, ईश्वर सबसे प्रेम नहीं करता वाला रवैया। नहीं, ईश्वर भी उनसे प्रेम करता हैं ओर हमें आवश्यकता

है उन्हे बचाने कि, उनसे प्रेम करने कि और उन्हे सुसमाचार सुनाने कि। मैं एक ईरानी मुसलमान को भी यीशु मसीह के शरण

में ला पाया हूँ। और यह वही लोग है जिन्हे उग्र के रूप में देखा जाता हैं, ईरान से आए हुएँ लोग। मैंने यीशु के लिए अन्य

मुसलमानों को भी जीता हैं। भगवान का शुक्र हैं कि मुसलमान लोग आमतौर पर बहुत ग्रहणशील होतो है,

सुसमाचार को लेकर। यदि आप किसी मुसलमान कि अंतरआत्मा को जीतते हुए उनके पास जाते हैं, तो वे बहुत अच्छे से सुसमाचार

को सुनते हैं। इस अवसर को हम जाने नहीं दे सकते (मिशन कार्य का अवसर हमारे चारों तरफ हैं) हमें यीशु

मसीह का यह सुसमाचार मुसलमानों तक पहुँचाना हैं और यीशु हमारे रक्षक हैं इस के बारे में उनको बताना हैं, आत्मा की मक्तिधन

के बारे में बताना हैं, और उन्हे यह बताना हैं कि यीशु कैसे हमारे पापों कि वजह से क्रूस पर मृत्यु

को प्राप्त हुए और कैसे उन्हे दफना दिया गया और कैसे वह फिर उठ खड़े हुएँ, धर्मग्रंथों के अनुसार शायद उन्हे श्रद्धा से

बचाया जा सकता हैं। आप कह सकते हैं कि पादरी एंडरसन क्या आप इस्लाम के खिलाफ कुछ ज्यादा ही प्रचार नहीं करते ! मैं मानता हूँ मैने

इस्लाम के खिलाफ प्रचार किया है। मैंने मार्मनवाद के ऊपर भी धमौपदेश दिया हैं और इसलाम के अनुसार मार्मनवाद गोरे

लोगो का इस्लाम हैं। एक ही सिद्धांत, एक ही धर्म। लेकिन कभी कभी मैं स्वइच्छा से ईसलाम

के खिलाफ शिक्षा देना नहीं चाहता हूँ क्योकि अभी एक प्रचार अभियान जारी किया गया हैं जिसके अंतर्गत मुसलमानों को

दुष्ट कह के प्रचार किया जा रहा हैं, सैन्य औघोगिक परिसर के लाभ के लिए। हमें शायद उनके साथ युद्ध भी करना

पड़ सके और यह उन्हें अमानवीय बना रहा हैं, उनका दुष्प्रचार कर रहा हैं। मेरा इससे कुछ लेना

देना नहीं हैं। मेरा एकमात्र लक्ष्य है मुसलमानों तक शांति से सुसमाचारो का प्रचार करना। मैं उनमें से किसी को

भी मृत नहीं देखना चाहता, मैं अपनी सोच उनके मुँह पर नहीं रखना चाहता।

यह मेरा लक्ष्य नहीं हैं , मेरा लक्ष्य हैं उनको यीशु के शरण में लाया जाए।

तो हम यह कैसे करेगे? इस प्रवचन के माध्यम से? नहीं, यह प्रवचन उनके लिए हैं जो बचाए जा चुके हैं।

हमें जाकर उनके दरवाजो पर दस्तक देकर उन्हें यह सुसमाचार देना हैं। मुसलमानों को बचाने के

लिए हमें यही योजना अपनानी होगी। उनको सुसमाचार के बारे में बताना होगा। यह रवैया कि उनसे

नफरत करो उनका कत्ल करों ओर यह सोचो कि व विकराल है, गलत हैं| आप लोगो में से

कितने लोग मुसलमानों को व्यक्तिगत जीवन में जानते हैं? वे अच्छे लोग है। कई मामलो में तो उनकी गलती भी नहीं होती हैं।

उन लोगों को जन्म से ही घोखें के माहौल में पाला गया और वे जन्म से ही अज्ञानी बनके रहे। मुझे यकीन हैं कि

उनमें से कई लोग दुष्ट भी हैं। मुझे गलत मत समझिये, पंरतु ऐसे दुष्ट और बुरे

मुसलमान भी हैं जो सब कि हत्या करना चाहते है और ऐसे मुल्ला भी हैं जो कि धार्मिक शिक्षक होकर

भी बाल योन शोषक और समलैंगिक हैं। इसलामी धर्म में हर प्रकार के राक्षसी दुष्ट

लोग है। पर एक साधारण मुसलमान भी एक साधारण कैथेलिक एक या एक साधारण अज्ञेयवादी यादि जैसे ही

अच्छे इन्सान हैं, जो कुरान को इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्हे कुरान

को ही मानना सिखाया गया हैं और वे इंतेज़ार कर रहे हैं कि "आप" जाकर उन्हे सुसमाचार सुनाएॅगे।

तो मैं यह नहीं चाहता कि मेरे धर्मोपदेश को गलत ठहराया जाएँ और कहा जाये कि मै

सभी मुसल्मानो से नफरत करता हूँ। मैं इसमें विश्वास नहीं रखता। मैं अरबी, फारसी

और इन्डोनेशियाई लोगों से बहुत प्रेम करता हूँ। वे जो भी है मेरे दिल में उनके लिए कोई नफरत

का भाव नही है। मैं सिर्फ उनसे नफरत करता हूँ जो प्रभु से नफरत करते है, जो बदमाश है।

ऐसे अल्पसंख्यक ही होंगे । . अरब लोगो में से केवल कुछ ही दुष्ट होगे। तो हमारे लिए यह आवश्यक

है कि हम जाकर उन्हे यीशु का सुसमाचार सुनाएँ और उन्हे प्यार की भाषा से सच्चाई बताएँ नाकि उनका चित्रण

दानव के रूप मं करें। लोग मूर्खतापूर्ण बातें कहते है। किसी ने कहा, "अरबों ने दुनिया को कुछ भी नही दिया!"

पर सोचिए संख्या अरबी में ही लिखी जाती है! यहां तक कि हमारी संख्या

,, यह सब अरबी के ही अंक है। रोमन संख्या के विकल्प के रूप में इन अरबी संख्यायो का इसतेमाल किया जाता है। मैं

खुश हूँ कि हमें MCXIII आदि लिखना नही पड़ता। यह एक परेशानी होती! हमें यह देने के लिए अरबों को धन्यवाद!

पर ये हमे इस्लम ने नहीं दिया। आपको लोगो और धरम के बीच

का अंतर समझना होगा। अरब हमारी समस्या नहीं हैं, इस्लाम हमरी समस्या हैं।

तो यहा बैठे बैठे ऐसी बेवकूफ टिप्पणीया नहीं किजिए। अरबों ने वैज्ञानिक खोज आदि

जैसे बहुत से कार्य किए है। यह जाति के बारे में नही है, यह राष्ट्र के बारे में भी नही है,

यह धर्म के बारे में है और मोहम्मद एक नकली पैंगम्बर है। पेशाब हो उस पर।

आएये अपने सिर को झुकाकर, प्रार्थना के शब्द कहते है। फादर, आपके वचन के लिए बहुत बहुत

धन्यवाद, प्रभु, और आपको धन्यवाद आपके सुसमाचार के लिए, यह वासतव में शुभ संवाद है। कृपया हमारी

मदद किजिए कि हम इस जहान के अटके हुए को राह दिखा सके । हमारी मदद किजिए

कि हम मुसलमानों तक यह पहुँचा सके, प्रभु। वे टेम्पे में रहे। वे फीनिक्स में रहे। हमारी मदद करे कि हम उनके दरवाजे पर

दसतक दे, उनकी खोज करे और उन्हे आॅखो में आॅसू और हाथ में बाइबल के साथ सुसमाचार दे, जो आज

हमारे दिलों में है, प्रभु। हमारी मदद कीजिए प्रभु कि हम हिंदू, बौद्ध और झूठे धर्म

भ्रष्ट ईसाइयों तक पहुँच सके। कैथेलिक तक पहुँचने के लिए भी हमारी मदद करे प्रभु । आज कैथोलिक भी

मुसलमानों कि तरह अरक्षित है। हमारी मदद किजिए ताकि हम उनको बचाने के लिए यीशु का

सुसमाचार सभी गुम लोगो तक पहुचा पाएँ, और हमारे हृदय को संहार, घृणा और हिंसा की भावना से मुक्त करवा पाऐं । प्रभु, यीशु के

नाम हम प्रार्थना करते हैं, आमीन!

 

 

 

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